नेशन अलर्ट/नई दिल्ली.
70 साल की उम्र में नर्मदा परिक्रमा करने वाले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को पदयात्रा के लिए तैयार किया है। माना जा रहा है कि उन्होंने ही राहुल को पदयात्रा के लिए उनके कान में मंत्र फूंके थे। अब जबकि राहुल गांधी भारत जोड़ो पदयात्रा के बहाने देश भ्रमण पर निकल रहे हैं तो दिग्विजय सिंह अन्य नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ इसकी तैयारियों में लगे हुए हैं।
दिग्विजय सिंह को राजनीतिक हलकों में उनके चाहने वाले दिग्गी राजा के नाम से पुकारते रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने ही संवाददाताओं को जानकारी दी थी कि राहुल की पदयात्रा में सौ पदयात्री ऐसे होंगे जो शुरू से अंत तक चलेंगे। इन्हें उन्होंने भारतयात्री का नाम दिया था।
यात्रा के संबंध में जानकारी देते हुए दिग्विजय सिंह ने बताया था कि जिन प्रदेशों से यह यात्रा नहीं गुजरेगी वहां के सौ-सौ यात्री इसमें शामिल होंगे जिन्हें अतिथि यात्रा का नाम दिया गया है। जिन प्रदेशों से यात्रा गुजरेगी वहां के भी सौ-सौ यात्री शामिल रहेंगे जिन्हें प्रदेश यात्री का नाम दिया गया है। जो इसके अलावा पदयात्रा में शामिल होंगे उन्हें स्वयं सेवक यात्री का नाम दिया गया है।
कल से 3570 किमी सफर पर राहुल
कांग्रेस ने भारत जोड़ो पदयात्रा का संकल्प गत दिनों राजस्थान में हुए संकल्प शिविर में लिया था। अब जबकि राहुल गांधी 7 सितंबर से भारत जोड़ने वाली पदयात्रा पर निकल रहे हैं तो देश का राजनीतिक माहौल निसंदेह बदलने लगेगा। अपने साथ चलने वाले पदयात्रियों के साथ राहुल गांधी औसतन प्रतिदिन 20-25 किमी की दूरी तय करेंगे।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो पदयात्रा 3570 किमी लंबी है। यात्रा का औपचारिक शुभारंभ 8 सितंबर को होगा जबकि 7 सितंबर को तमिलनाडु के उस श्रीपेरंबदूर में राहुल प्रार्थना सभा में शामिल होंगे जहां पर उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी देश के लिए शहीद हो गए थे। यहां से वह कन्याकुमारी पहुचेंगे जहां तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन उन्हें राष्ट्रध्वज सौपेंगे। यह कार्यक्रम गांधी मंडपम में होगा।
12 प्रदेशों से गुजरते हुए इस यात्रा का समापन श्रीनगर में होगा। यात्रा तकरीबन 148 दिन तक चलेगी। यात्रा का जो रूट अभी निर्धारित है उसके अनुसार कन्याकुमारी, तिरूअनंतपुरम, कोच्चि, मैसूर, बेल्लारी, रायचूर, नांदेड़, जलगांव, इंदौर, कोटा, दोसा, अलवर, बुलंदशहर, दिल्ली, अंबाला, पठानकोट, जम्मू से होते हुए उत्तर दिशा की ओर बढ़ेगी।
राहुल के साथ चलने वाली पदयात्रियों की जो सूची तैयार की गई है उसमें तमिलनाडु से 3 भारतयात्री शामिल होंगे। इसी तरह राजस्थान से 9, महाराष्ट्र से 9, मध्यप्रदेश से 10 व उत्तरप्रदेश से 10 भारतयात्री शामिल होंगे। राहुल के साथ कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा, युवा नेता कन्हैया कुमार जैसे नाम शामिल हैं। तकरीबन पांच महीने तक यात्रा चलेगी। इस दौरान 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेश कवर होंगे। राहुल यात्रा के दौरान कंटेनर में सोएंगे।
192दिन चली थी नर्मदा परिक्रमा
दरअसल, माना जा रहा है कि इस तरह की पदयात्रा निकालने की सलाह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दी थी। उन्होंने ही 70 साल की उम्र में अपनी पत्नी अमृता राय (46) के साथ नर्मदा नदी के दोनों किनारे की तकरीबन 3300 किमी लंबी पदयात्रा 192 दिनों में पूरी की थी।
दिग्विजय सिंह 1993 से सन 2003 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। इसके बाद कांग्रेस 15 साल तक सत्ता से बाहर रही। भाजपा ने डेढ़ दशक तक कांग्रेस को मध्यप्रदेश में जमने ही नहीं दिया। 2003, 2008 व वर्ष 2013 में कांग्रेस किंतु परंतु करते हुए विधानसभा चुनाव में हारती रही।
नर्मदा परिक्रमा पर निकले दिग्विजय सिंह ने ऐसा समा बांधा कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को सरकार बनाने लायक जनता का समर्थन मिला हालांकि कुछ समय बाद कांग्रेस में बगावत के चलते कमलनाथ की सरकार गिर गई। लेकिन इतना तय है कि दिग्विजय सिंह ने अपनी नर्मदा परिक्रमा में मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 110 विधानसभा सीटों का दौरा किया था जो कि निर्णायक साबित हुआ था।
तब कांग्रेस ने प्रदेश की 114 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी सत्ताधारी भाजपा 109 सीटों पर ही सिमट गई थी। हालांकि कांग्रेस 2 सीटों से बहुमत से चूक गई थी लेकिन उसे यहां तक लाने में दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा का बहुत बड़ा हाथ था।
अब इसी तरह की पदयात्रा पर राहुल गांधी निकल रहे हैं। कांग्रेस देश में 2014 के बाद से चुनाव हारते आ रही है। पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे हार मिली और यह सिलसिला राज्यों के विधानसभा चुनाव में बढ़ते गया। अब इक्का दुक्का राज्यों में ही कांग्रेस सत्ता सुख भोग रही है। ऐसे समय में राहुल की पदयात्रा कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। लेकिन देखना यह होगा कि आंतरिक विरोधों के बीच यह पदयात्रा किस तरह से भारत को जोड़ती है?