अनिल गुप्ता@दुर्ग। जिले में टमाटर उत्पादन करने वाले किसान इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं। बंपर उत्पादन होने के कारण किसानों को टमाटर या तो सड़कों पर फेंकने पर मजबूर होना पड़ रहा है। वही कुछ किसान तो अपने मवेशियों को इसे खाने के लिए खुले छोड़ दिया है।अधिकांश किसानों ने तो 2 माह से फसल की तोड़ाई भी नहीं की है। एक अनुमान के मुताबिक जिले में करीब 50 से 60 करोड़ रुपयों के टमाटर की फसल का नुकसान हुआ है। देखिए इस खास रिपोर्ट में।
दुर्ग जिले का धमधा ब्लाक टमाटर उत्पादन में अग्रणी है। छत्तीसगढ़ व पड़ोसी राज्यों के साथ पूरे दक्षिण भारत में टमाटर यहा से बाहर भेजा जाता है। धमधा का टमाटर पाकिस्तान भी निर्यात किया जाता है। इस बार इस क्षेत्र में टमाटर की फसल की बंपर पैदावार हुई है। और अधिक उत्पादन ही अब किसानो के लिए निराशा का कारण बना हुआ है। दक्षिण भारत सहित अन्य राज्यों में भी इस बार का मौसम टमाटर की फसल के लिए अनुकूल रहा। जिसके कारण इस बार मांग नही हुई। और न ही लेवाल टमाटर खरीदने पहुंचे। खेतों में टमाटर की फसल पड़ी हुई है। उचित रेट नही मिलने का कारण इसकी तोड़ाई भी नही की जा रही है। वही कुछ किसानो ने जहां अपने मवेशियों को खेत में खाने छोड़ दिया है। तो कई किसान के द्वारा तो टमाटर को सड़को को किनारे फेंका जा रहा है। दुर्ग जिले के उद्यानिकी विभाग की उप संचालक पूजा कश्यप साहु का कहना है, की पूरे दुर्ग जिले में 9560 हेक्टेयर में टमाटर की खेती की जा रही है। पूरे देश सहित दुर्ग में भी टमाटर की फसल का अधिक उत्पादन हुआ है। जिसके कारण दुर्ग और धमधा के किसानो को टार्सपोर्टिंग की जो सही कीमत थी, वह नही मिल पा रही थी। जिसके कारण लेवाल भी नही हुआ है। नुकसान का सही आकलन दो से तीन महीने बाद ही हो पायेगा।
इधर इस विषय को लेकर किसान नेता राजकुमार गुप्ता का कहना है, की जिले के किसानो को लागत से आधे कीमत पर टमाटर बेचने पर मजबूर होना पड़ा है। जितने रकबे पर फसल बोया गया है, उसके अनुसार छोटे बड़े किसानो को 50 से 60 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है। और इस तरह का नुकसान टमाटर उत्पादक किसानों को आगे भी उठाना पड़ेगा। जब तक टमाटर प्रोसेसिंग यूनिट के लिए ठोस पहल नही की जायेगी।
पिछले वर्ष टमाटर की इतनी मांग थी, की छोटे किसानो ने भी लाखो की कमाई की थी। लेकिन धमधा ब्लाक सहित दुर्ग जिले में टमाटर की बंपर उत्पादन ही अब किसानो के लिए अभिशाप बन गया है। और अब उन्हें चिंता सता रही है, की फसल उत्पादन के लिए उन्होंने जो कर्ज लिया था, उसका भुगतान किस तरह से होगा।