रायपुर | संवाददाता: केंद्र सरकार ने माना है कि बस्तर के 10 हज़ार से अधिक आदिवासी, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से आज तक नहीं लौटे हैं. सरकार ने दावा किया है कि प्रभावित परिवार राज्य सरकार की पुनर्वास योजनाओं की जानकारी उपलब्ध कराने और सुरक्षा शिविरों के माध्यम से उपलब्ध सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद अपने मूल स्थान पर लौटने के लिए तैयार नहीं हैं.
गौरतलब है कि 4 जून 2005 से राज्य सरकार के समर्थन से कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में माओवादियों के ख़िलाफ़ सलवा जुड़ूम अभियान चलाया गया था. इस अभियान के अंतर्गत माओवादियों के हमले का हवाला दे कर राज्य सरकार ने अविभाजित दंतेवाड़ा के 644 गांवों को खाली करवा दिया गया था.
इन गांवों की आबादी को राज्य सरकार ने 17 अलग-अलग सरकारी राहत शिविरों में रखा था. इसके अलावा बड़ी संख्या में आदिवासी पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में पलायन कर गये.
इस बीच सलवा जुड़ूम में शामिल लोगों पर हत्या और बलात्कार के गंभीर आरोप लगे. इसके अलावा सरकार द्वारा आम नागरिकों को हथियार थमाए जाने को लेकर भी सवाल उठे और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम के मामले में सरकार की कड़ी आलोचना की और सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2011 को सलवा जुडूम को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला सुनाया.
लगभग 6 सालों तक चले इस अभियान का सबसे पीड़ादायक पहलू ये रहा कि सरकार द्वारा खाली कराए गए 644 गांवों की एक बड़ी आबादी, हमेशा-हमेशा के लिए इन शिविरों में रहने के लिए मज़बूर हो गई.
आंध्र प्रदेश की ओर जाने वाले आदिवासियों की भी गांव वापसी नहीं हो पाई.
पिछली सरकार के दौरान आदिवासियों ने रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की थी और राज्य से बाहर रह रहे आदिवासियों की घर वापसी की पहल का अनुरोध किया था. तत्कालीन मंत्री कवासी लखमा से भी आदिवासियों ने मुलाकात की थी. लेकिन कवासी लखमा ने यह कह कर इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था कि आदिवासियों की सुरक्षा की ज़िम्मेवारी कौन लेगा?
केंद्र सरकार ने माना कि उसने सलवा जुड़ूम के दौरान खाली करवाए गए 644 में से 103 गांवों का सर्वेक्षण किया और पाया कि इससे तीन ज़िलों के हजारों आदिवासी प्रभावित हुए हैं.
सुकमा के 85 गांवों के सर्वेक्षण से पता चला कि इन गांवों के 2,229 परिवारों के 9,703 आदिवासी प्रभावित हुए हैं. इनमें दोरला, मुरिया और धुर्वा समाज के लोग हैं.
इसी तरह बीजापुर के 8 गांवों के 119 परिवारों के 579 लोग प्रभावित हुए हैं. इनमें दोरला, मुरिया और गोंड समाज के लोग हैं.
केंद्र सरकार ने माना कि दंतेवाड़ा के 10 गावों के सर्वेक्षण में 41 प्रभावित परिवार का पता चला, जिसमें 208 आदिवासी शामिल हैं. इनमें मुरिया, माड़िया, गोंड और हल्बा समाज के लोग शामिल हैं.
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