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महाकाल के दर्शन मात्र से खत्म होता है अकाल मृत्यु का भय, जानिए इस ज्योतिर्लिंग का इतिहास

NPG ब्यूरो

उज्जैन। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के बाद अब महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर पीएम मोदी का ध्यान गया है। पीएम मोदी आज यानी 11 अक्टूबर मंगलवार को उज्जैन में बने महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विकास परियोजना का उद्घाटन किया। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव साक्षात विराजमान है। जानिए महिमा, उनके अवतारों और उनसे जुड़ी कथा के लिए समर्पित है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

यह ज्‍योतिर्लिंग मध्‍यप्रदेश के उज्जैन में है जो भी इंसान इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसे मोक्ष मिलता है। महाभारत में, महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति कहते हैं। मान्यता अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं। तभी जो भी व्‍यक्‍ति इस मंदिर में आ कर भगवान शिव की सच्‍चे मन से प्राथर्ना करता है, उसे मृत्‍यु के बाद मिलने वाली यातनाओं से मुक्‍ति मिलती हैं।

अवंति नगरी में शुभ कर्मपरायण तथा सदा वेदों के स्वाध्याय में लगे रहने वाला एक वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहता था। जिसके चार संस्कारी और आज्ञाकारी पुत्र थे। उस समय रत्नमाला पर्वत पर दूषण नामक एक असुर ने धर्मविरोधी कार्य आरंभ कर रखा था। सबको स्थानों को नष्ट कर देने के बाद उस असुर ने अवंति (उज्जैन) पर भारी सेना लेकर आक्रमण कर दिया था। अवंति नगर के सभी निवासी जब उस संकट में घबराने लगे, तब वेदप्रिय और उसके चारों पुत्रों के साथ सभी नगरवासी शिवजी के पूजन में तल्लीन हो गए। भगवान शिवजी के पूजन में तल्लीन होने पर भी, दूषण ने ध्यानमग्न नगर वासियों को मारने का आदेश दिया। तब भी वेदप्रिय के पुत्रों ने सभी नगर वासियों को भगवान शिव के ध्यान में मग्न रहने को कहा।असुर दूषण ने देखा कि यह डरने वाले नहीं हैं तो इन्हें मार दिया जाए और जैसे ही वह आगे बढ़ा, त्योंहि शिव भक्तों द्वारा पूजित उस पार्थिवलिंग से विकट और भयंकर रूपधारी भगवान शिव प्रकट हुए और वहा उपस्थित सभी दुष्ट असुरों का नाश कर, महाकाल के रूप में विख्यात हुए। शिव ने अपने हुंकार से सभी दैत्यों को भस्म कर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाया। इसी कारण से इस मंदिर में महाकाल को भस्म लगाई जाती है। महाकाल मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के गर्भगृह में निकास का द्वार दक्षिण दिशा की ओर से है। जो की तांत्रिक पीठ के रूप में इसे स्थापित करता है।

महाकाल की भस्म आरती सबसे अलग

भगवान शिव एकलौते ऐसे भगवान हैं, जिनका पहनावा बहुत ही साधारण है। मृग की छाल और भस्म ही उनका वस्त्र और आभूषण रहा है। इसलिए भगवान शिव को उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती ही की जाती है। दरअसल भस्म जगत का सबसे शुद्ध रूप है। विश्व में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान शिव की भस्मारती की जाती है। भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। वर्तमान में गाय के गोबर से बने उपलों (कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है। यह आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे की जाती है।

उज्जैन के राजा है महाकाल

महाकाल को उज्जैन का राजा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि किसी भी शुभ काम को करने से पहले महाकाल का आशीर्वाद लेना बेहद जरूरी है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। पहले भगवान महाकाल का ठंडे जल से स्नान कराया जाता है जिसके पश्चात उनका पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। पीपल के पत्ते, गोबर के बने कंडे ,बेर के पेड़ की पत्तियां और पलाश को जलाकर भस्म तैयार किया जाता है जिससे भगवान महाकाल की आरती की जाती है। उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग के कुछ ही दूरी पर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि माता का मंदिर है। ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ के इतने करीब होने से वजह से इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। महाकाल के गर्भ गृह में माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमाएं विराजमान है।

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सोमनाथ

मल्लिकार्जुन

महाकालेश्वर

ॐकारेश्वर

वैद्यनाथ

भीमाशंकर

रामेश्वर

नागेश्वर

केदारनाथ

विश्वनाथ

घुश्मेश्वर

त्रयम्बकेश्वर

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