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राजनांदगांव : संत रविदास ने भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया – कमल सोनी

राजनांदगांव । रविदास जी के जयंती पर उनके बताए मार्ग का अनुसरण करें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ जिला भाजपा के पूर्व सोशल मीडिया प्रभारी कमल सोनी ने कहा कि हमारा देश साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की धरती है। यहां अनेक महान संतों ने जन्म लेकर भारतभूमि को धन्य किया है। इन्‍हीं में से एक नाम महान संत रविदास जी का है। संत रविदास बहुत ही सरल हृदय के थे और दुनिया का आडंबर छोड़कर हृदय की पवित्रता पर बल देते थे। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन ही रविदास जयंती मनाई जाती है।

श्री सोनी ने आगे कहा कि मध्यकालीन कवि, समाज सुधारक संत रविदास जी का जन्म यूपी के वाराणसी में 16 फरवरी 1398 ई० को हुआ था। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि उनका जन्म 1450 ई० में हुआ। हालांकि एक बात पर सभी इतिहासकार सहमत हैं कि संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को हुआ था। इसी कारण उनकी जयंती माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है। उन्होंने दोहों और उपदेशों के माध्यम से जाति आधारित सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संदेश दिया। संत रविदास जी परमेश्वर कबीर जी के समकालीन थे। संत रविदास जी के पिता का नाम संतोष दास और माता जी का नाम कलसा देवी था। जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ उस दिन रविवार था इस कारण उन्हें रविदास कहा गया। संत रविदास जी को ऊंच-नींच, छुआछूत, जात-पात का भेदभाव देखने को मिला। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे वर्ण व्यवस्था, छुआछूत और ब्राह्मणवाद , पाखण्ड पूजा के विरोध में अपना स्वर प्रखर किया है। वे भक्ति आंदोलन के एक प्रसिद्ध संत थे। उनके भक्ति गीतों और छंदों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला। संत रविदास ने देश में फैले ऊंच-नीच के भेदभाव और जाति-पात की बुराईयों को दूर करते हुए भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया था। मन चंगा तो कठौती में गंगा, यह वाक्य तो आपने सुना ही होगा। इस वाक्य को संत शिरोमणि रविदास जी के द्वारा कहा गया है। वे जात-पात के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने लिखा, जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।

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