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रायपुर : सोंड्रा गांव में पांडुवंशी काल की मिली बुद्ध प्रतिमा

रायपुर से बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सोंड्रा में गृह निर्माण के लिए किए जा रहे कार्य के दौरान पांडुवंशी काल की प्राचीन बुद्ध प्रतिमा मिली है। इसके साथ ही अन्य पुरातात्विक प्रतिमाएं मिलने से गांव के लोगों में खुशी है। इस संबंध में जानकारी मिलते ही पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग के संचालक विवेक आचार्य के निर्देश पर पुरातत्व विभाग की टीम डॉ. पीसी पारख, डॉ. वृषोत्तम साहू और डॉ. राजीव मिंज के द्वारा स्थल निरीक्षण किया गया।

पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रायपुर से बिलासपुर मुख्य मार्ग में 16 किलोमीटर की दूरी पर सांकरा से दो किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित ग्राम सोंड्रा है। यहां खारुन नदी लगभग तीन किलोमीटर पश्चिम दिशा पर स्थित है। प्रतिमा प्राप्ति स्थल ग्राम के सबसे ऊंचाई वाले भाग पर स्थित है और यहां प्राचीन टीला होने के साक्ष्य दिखाई देते हैं। दिलेन्द्र बंछोर के व्यक्तिगत आवास परिसर में ही भवन के विस्तार के लिए कालम उत्खनन के दौरान भूमि की सतह से लगभग तीन फीट की गहराई पर बुद्ध की प्रतिमा मिली।

अधिकारियों ने बताया कि स्थानीय बालुए पत्थर में निर्मित इस प्रतिमा की चौड़ाई 74 ऊंचाई 87 मोटाई 40 सेंटीमीटर है। बुद्ध की इस विशाल प्रस्तर प्रतिमा के माथे पर ऊर्णा (तिलक चिन्ह) का अंकन इसे अनोखा रूप प्रदान करती है। इस आधार पर इसके ध्यानी बुद्ध होने की संभावना अधिक प्रतीत होती है। बुद्ध की यह आवक्ष प्रतिमा अपूर्ण है, जिस पर छेनी के चिन्ह साफ दिखाई दे रहे हैं। त्रि-स्तरीय निर्माण तकनीक में बनी बुद्ध प्रतिमा का यह ऊपरी भाग है। इस तकनीक का प्रयोग बालुए पत्थर की विशाल प्रतिमाओं के निर्माण के लिए किया जाता था। जिसमें किसी प्रतिमा को तीन प्रस्तर खंडों में योजना के अनुरूप स्तरों में निर्मित कर लम्बवत स्थापित किया जाता था। इस तकनीक की बनी बुद्ध प्रतिमा के उदाहरण छत्तीसगढ़ के सिरपुर व राजिम और बिहार के बोधगया में देखे गए हैं।

अधिकारियों ने बताया कि स्थल निरीक्षण करनें पर यहाँ अन्य प्रतिमाओं के होने की भी जानकारी प्राप्त हुई है, जो कि निकट ही में स्थित मंदिर में तथा मंदिर के बगल में बने चबूतरे पर स्थापित हैं। प्रतिमाओं में भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध, उपासक, अज्ञात स्थानक प्रतिमा, योगिक ध्यानी मुद्रा में बुद्ध, ललितासन मुद्रा तारा, स्थानक बोधिसत्त्व के साथ ही चार शिवलिंग, चार खंडित पायदार सिलबट्टे, एक प्रणाल युक्त प्रतिमा पीठ, कुछ खंडित प्रतिमाएं व स्थापत्य खंड प्राप्त हुये हैं। उक्त स्थल के पुरावशेष पांडुवंशी काल के (6वीं से 9वीं शताब्दी ई.) प्रतीत हो रहा है।

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