दंतेवाड़ा। आज से दंतेवाड़ा के शक्ति पीठ में रियासत कालीन ऐतिहासिक फागुन मड़ई शुरू होने का रहा है। फागुन मड़ई की तैयारी को लेकर मंदिर कमेटी और ग्रामीण जोर शोर से लगे हुए है। दंतेश्वरी मंदिर में रियासत कालीन फागुन मड़ई का आयोजन कई शताब्दियों से चली आ रही है।
26 फ़रवरी से शुरू होने वाले इस फागुन मड़ई (मेला) के कई अद्भुत रहस्य है। दंत कथाओं के अनुसार लगभग 800 वर्ष पहले इस ऐतिहासिक मेला की शुरुआत हुई थी। इस मेले के आयोजन के लिए बस्तर संभाग समेत ओड़िशा से देवी देवताओं को मेले में आमंत्रित किया जाता है। फागुन मड़ई शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि से प्रारंभ होकर 9 दिनों तक चलता है। जिसे नौ पालकी भी कहा जाता है। इन 9 दिनों तक मावली माता की पालकी को दंतेश्वरी मंदिर से नारायण मंदिर तक रोजाना घूमाया जाता है और पूरे 9 दिनों तक विभिन्न कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता है।
मंदिर के सामने अष्टधातू के त्रिशूल की स्थापना
दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी के अनुसार बसंत पंचमी के दिन से मंदिर के सामने अष्टधातू के त्रिशूल की स्थापना की जाती है इसके साथ ही फागुन मड़ई की तैयारियां शुरू हो जाती है। 9 वे पालकी को लकड़ी के बजाय ताड़ के पत्तों से होलिका दहन किया जाता है, होलिका दहन के पश्चात राख से एक दूसरे को तिलक लगाया जाता है इसी दिन बड़ा मेला लगता है। इस दिन मेले में आमंत्रित सभी देवी देवता मांई दंतेश्वरी के साथ नगर परिक्रमा करते हैं। जिसमें देवी – देवताओं के छत्र और लंबे बांस पर लगी ध्वजा पताकाएं लेकर ग्रामीण चलते है और उनके साथ में फाग गायन करती मंडलिया चलती है ।और बाद अंतिम दिन देवी देवताओं की विदाई कर मेला का समापन किया जाता है।