स्पेस खुद में ही एक भुलभुलयां है, जो हजारों तारों, ग्रहों, उपग्रहों, क्षुद्रग्रहों और धूमकेतु से भरा हुआ है। हमारी धरती भी इसका एक अभिन्न अंग है। ऐसे में अंतरिक्ष में जो भी फेरबदल होते हैं, उनका प्रभाव धरती पर भी पड़ता है। अब सवाल है कैसे फेरबदल? तो आइये इनके बारे में जानते हैं।
क्षुद्रग्रह यानी एस्टेरोइड हमारे सौर मंडल के निर्माण के बाद से बचे हुए हैं। हमारा सौर मंडल लगभग 4.6 अरब साल पहले शुरू हुआ था जब गैस और धूल का एक बड़ा बादल ढह गया था। जब ऐसा हुआ, तो ज्यादातर एलिमेंट बादल के केंद्र में गिर गई और सूर्य का निर्माण हुआ। बादलों में संघनित धूल में से कुछ ग्रह बन गए। जबकि एस्टेरोइड बेल्ट की चीजों को कभी भी ग्रहों में शामिल होने का मौका नहीं मिला। यानी कि वे उस समय के अवशेष हैं जब ग्रहों का निर्माण हुआ था।
आए दिन हम सुनते है कि आज धरती की तरफ ये एस्टेरोइड या धूमकेतु आ रहा है। लेकिन सवाल ये है कि ये होते क्या हैं, कैसे बनते हैं और हमारी धरती को कैसे प्रभावित करते हैं। बता दें कि अंतरिक्ष में हजारों क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्का जैसे कई एलीमेंट है, जो कभी-कभी अपने ऑर्बिट में यात्रा करते समय पृथ्वी के बिल्कुल पा आ सकते हैं। इसके साथ ही पृथ्वी के आसपास की वस्तुएं भी इसके गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण ग्रह की ओर आकर्षित होती हैं।
आज से लगभग 6.6 करोड साल पहले एक एस्टेरोयड के टकराने के चलते एक विशालकाय प्रजाति का अस्तित्व ही खत्म हो गया था। बता दें कि मीडिया रिपोर्ट से पता चला है कि अगर यह ऐस्टरॉइड धरती से 30 सेकंड पहले या 30 सेकंड बाद टकराते तो डायनासोर शायद ख़त्म ही नहीं होते। क्योंकि यह ऐस्टरॉइड अटलांटिक या प्रशांत महासागर के गहरे पानी में गिरता जिससे इसका प्रभाव जमीनी भागों पर उतनी अधिक नहीं पड़ता।
बता दें कि नासा ने क्षुद्रग्रहों की गति को ट्रैक करने के लिए स्पेस में कई तकनीकों जैसे टेलीस्कोप, सैटेलाइट तैयार किया है, ताकि इन पर बड़े पैमाने पर नजर रखी जा सके। मान लिजिए कोई बढ़ा एस्टेराइड धरती की तरफ बढ़ता या टकराता है, तो यह उस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से के लिए बहुत विनाशकारी हो सकता है। ऐसे में इससे सरक्षित रहना जरूरी है।
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