रायपुर। संवाददाताः छत्तीसगढ़ में शिक्षा का अधिकार अधिनियम यानी आरटीई के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चे बीच सत्र में पढ़ाई छोड़ रहे हैं. राज्य में पिछले तीन सालों में 53 हजार से अधिक बच्चों ने बीच सत्र पढ़ाई छोड़ दी.
प्रदेश के कोरबा और रायपुर जिले में सबसे ज्यादा बच्चों ने बीच सत्र में स्कूल छोड़ा है. 2022-23 में अकेले रायपुर जिले से ही 2496 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया.
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, शिक्षा सत्र 2020-21 में 10427, 2021-22 में 18399 और 2022-23 में 24478 बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी.
रायपुर जिले में 2020-21 में 903, 2021-22 में 1469 और 2022-23 में 2496 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया.
इसी तरह बिलासपुर में 2020-21 में 670, 20-21-22 में 1413 और 20-22-23 में 1576 बच्चों ने स्कूल छोड़ा.
वहीं कोरबा जिले में 2020-21 में 1033, 2021-22 में 1156 और 2022-23 में 2273 बच्चों ने बीच सत्र स्कूल छोड़ दिया.
आरटीई के तहत सभी निजी स्कूलों में बीपीएल परिवार के गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं.
अधिनियम के तहत 3 से साढ़े 6 साल तक के बच्चे किसी भी निजी स्कूल में प्रारंभिक कक्षा में प्रवेश ले सकते हैं. एक बार चयन होने के बाद बच्चा उसी स्कूल में बारहवीं तक निःशुल्क पढ़ाई कर सकता है.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम गरीब बच्चों के लिए वरदान साबित हुआ है. गरीब बच्चे पहले निजी स्कूलों में पढ़ने का सिर्फ सपना ही देखते थे, लेकिन अब यह हकीकत में बदल गया है.
गरीब बच्चों के पालक भी जानकार हो गए हैं और प्रवेश दिलाने एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. हर साल निजी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन बीच सत्र पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या ने सबको चौका दिया है.
बीच सत्र पढ़ाई छोड़ने के मामले को लेकर अब स्कूल शिक्षा विभाग गंभीर हो गया है. इसे रोकने जिला स्तरीय समिति गठित की जा रही हैं.
कमेटी कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित होंगी, जिसमें एसपी और निगम आय़ुक्त को भी शामिल किया जाएगा.
इसी तरह मेंटर की नियुक्ति भी की जाएगी. बच्चों को किसी प्रकार की दिक्कत आने पर मेंटर स्कूल प्रबंधन और पालक के बीच समन्वय स्थापित कर समाधान निकालेंगे.
बच्चों के बीच सत्र स्कूल छोड़ने को लेकर विशेषज्ञ कई कारण बता रहे हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि आरटीई के तहत निजी स्कूलों में बच्चों को देर से प्रवेश मिलता है, जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई पिछड़ जाती है.
इसे कवर करने में बच्चों को दिक्कतें होती हैं. स्कूल प्रबंधन का रवैया भी इस मामले में लापरवाही भरा होता है.
पढ़े-लिखे न होने के कारण पालक बच्चों का होमवर्क नहीं करा पाते और उनके पास ट्यूशन में भेजने के पैसे नहीं होते. पढ़ाई के पिछड़ने के दबाव के चलते बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं.
इतना ही नहीं, गरीब और वंचित तबके के बच्चे बड़े स्कूलों के माहौल में खुद को ढाल नहीं पा रहे हैं. घर और स्कूल के माहौल में जमीन-आसमान का अंतर हो जाता है. इससे बच्चे हीनभावना से ग्रसित हो रहे हैं और पढ़ाई से उनका मोह भंग हो रहा है.
ज्यादातर निजी स्कूलों में आरटीई के तहत दाखिला पाए बच्चों की मॉनिटरिंग ठीक से नहीं होती. पाठ्यपुस्तकें, यूनिफार्म समेत अन्य गतिविधियों के लिए अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है, जिसे बहुत से बीपीएल बच्चों के पालक नहीं दे पाते. इसकी वजह से स्कूल प्रबंधन उन बच्चों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर कर देता है.
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