गुरुवार को सुबह से ही मां अन्नपूर्णा मंदिर के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। मंदिर के बाहर सड़क पर लगी बैरिकेडिंग में श्रद्धालु कतारबद्ध होने लगे थे। मंदिर की ओर से श्रद्धालुओं के लिए नाश्ते और पानी का इंतजाम किया गया था।
भगवान शिव को अन्न-धन की भिक्षा देने वाली मां अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन आज से शुरू हो जाएंगे। भक्तों की श्रद्धा ऐसी कि 24 घंटे पहले ही भक्तों की कतार माता के दरबार के बाहर लग गई। धनतेरस से अन्नकूट तक स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के खजाने से भक्तों पर सुख और सौभाग्य की बरसात होगी।
गुरुवार को सुबह से ही मां अन्नपूर्णा मंदिर के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। मंदिर के बाहर सड़क पर लगी बैरिकेडिंग में श्रद्धालु कतारबद्ध होने लगे थे। मंदिर की ओर से श्रद्धालुओं के लिए नाश्ते और पानी का इंतजाम किया गया था। भक्तों की कतार बांसफाटक से गोदौलिया और दूसरी ओर विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर चार से आगे निकल चुकी थी। स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के पांच दिवसीय दर्शन के लिए मंदिर प्रबंधन ने तैयारियां पूरी कर ली हैं। आने वाले भक्त परिसर में बनी अस्थायी सीढ़ी से होते हुए प्रथम तल पर विराजमान माता का दर्शन कर राम मंदिर से बाहर होंगे।
माता के दर्शन से पहले ही भक्तों को माता के खजाने के रूप में लावा व सिक्के का प्रसाद मिलेगा। 10 नवंबर को सुबह एक बजे से माता के दर्शन आरंभ होंगे। भक्तों को वितरित करने के लिए पांच लाख रुपये से अधिक के सिक्के मंगाए गए हैं। तत्कालीन महंत मंदिर के आठवें महंत के रूप में स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के दर्शन पूजन की परंपरा का निर्वाह करेंगे। महंत शंकर पुरी ने बताया कि धनतेरस पर लगभग पांच लाख से अधिक सिक्के (खजाना) और 11 क्विंटल लावा भक्तों में वितरण के लिए मंगवाया गया है। इस दिन पूजित खजाना सिक्के के रूप में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को दिया जाता है। इस प्रसाद को घर के भंडार में रखने मात्र से धन धान्य की कमी नहीं होती है।
दिव्यांग और बुजुर्गों को सीधे मिलेगा प्रवेश
मां अन्नपूर्णा के दरबार में दिव्यांग और बुजुर्गों को सीधे माता के दरबार में प्रवेश दिया जाएगा। इसके लिए मंदिर के सेवादारों को तैनात किया गया है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रांगण में चिकित्सक भी तैनात किए गए हैं।
बाबा विश्वनाथ से पहले काशी में विराजमान हैं मां अन्नपूर्णा
महंत शंकर पुरी ने बताया कि काशी में मां अन्नपूर्णा का वास भगवान विश्वनाथ के आगमन से पहले हो चुका था। मां अन्नपूर्णा का दर्शन तो भक्तों को नियमित मिलता हैं, लेकिन खास स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन प्रति वर्ष में सिर्फ चार दिन धनतेरस से अन्नकूट तक ही मिलता है।
कमलासन पर विराजमान हैं मां अन्नपूर्णा
मंदिर के प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि स्वर्ण अन्नपूर्णा कमलासन पर विराजमान हैं। रजत प्रतिमा में विराजमान काशीपुराधिपति की झोली में स्वयं भगवती अन्नदान दे रही हैं। वहीं भगवती अन्नपूर्णा के दाईं ओर देवी लक्ष्मी और बाईं तरफ देवी भूदेवी विराजमान हैं। काशीवासियों समेत पूरे देश के पालन पोषण का पूरा दायित्व मां भगवती पर है। धार्मिक पुस्तक काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। जब से माता अन्नपूर्णा काशी में विराजमान हुईं और यह मंदिर काशी के प्रधान देवीपीठ में एक माना जाता है।
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