ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी (विशेष कार्याधिकारी) रविंद्र सिंह यादव पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप में केस दर्ज कराया गया है। शासन के आदेश पर यह कार्रवाई हुई है। करीब चार साल तक चली जांच के बाद विजिलेंस के इंस्पेक्टर ने ओएसडी के खिलाफ इस मामले में मेरठ के विजिलेंस थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। विजिलेंस की जांच में पुष्टि हुई है कि उन्होंने अपनी आय से 158.61 प्रतिशत अधिक व्यय किया है।
विजिलेंस द्वारा रविंद्र सिंह यादव के 24 साल के कार्यकाल की जांच की गई थी। ओएसडी के खिलाफ यह मुकदमा दर्ज हो जाने से प्राधिकरण के अधिकारियों में भी हड़कंप मच गया है।
विजिलेंस के इंस्पेक्टर सुनील कुमार वर्मा की ओर से यह मुकदमा दर्ज कराया गया है। इसमें कहा गया है कि शासन के आदेश पर 2 जनवरी 2019 को नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी और वर्तमान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के विशेष कार्याधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश किए गए थे। इनकी पूरी जांच करने के बाद शासन को विजिलेंस ने रिपोर्ट भेजी थी और शासन से अनुमति मिलने के बाद यह मुकदमा दर्ज हुआ।
इसमें आरोप लगाया गया है कि जांच की निर्धारित अवधि में उन्हें कुल 94 लाख 49 हजार 888 की आय हुई, जबकि ओएसडी द्वारा 2 करोड़ 44 लाख 38 हजार 547 रुपये का व्यय किया गया। उन्होंने अपनी आय से 1 करोड़ 49 लाख 88 हजार 659 यानि 158.61 प्रतिशत अधिक व्यय किया था। विजिलेंस के अनुसार इस संबंध में रविंद्र ने जांच अधिकारी को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। वह अपनी अतिरिक्त आय का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं करा सके।
आरोपी के खिलाफ दूसरा मुकदमा
ओएसडी रविंद्र के खिलाफ चार माह में विजिलेंस की ओर से दूसरा मुकदमा दर्ज कराया गया है। इससे पहले नौ नवंबर को भी मेरठ विजिलेंस थाने में उनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया था। इसमें आरोप था कि नोएडा प्राधिकरण में नियुक्ति के दौरान उन्होंने वित्तीय अनियमितता कर आवंटन किए थे।
राजनीतिक साजिश में मुझे बलि का बकरा बनाया : रविंद्र
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी रविंद्र सिंह यादव ने खुद पर आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज होने के संबंध में कोई जानकारी होने से इनकार किया है। इस संबंध में जब उनका पक्ष जानने के लिए हिन्दुस्तान ने फोन किया तो उन्होंने पूरी जांच पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि राजनीतिक साजिश के तहत उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। उन्होंने एक बड़े राजनीतिक व्यक्ति पर अनेक गंभीर आरोप लगाए। रविंद्र ने जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि 1997 का एक आदेश है कि अगर कोई शिकायत करता है तो शिकायतकर्ता का शपथ पत्र लेकर जांच की जाती है, लेकिन इस मामले में कोई शपथ पत्र नहीं लिया गया और शिकायतकर्ता का कुछ पता नहीं है कि वह कौन है, एक गोपनीय पत्र पर यह जांच हुई।
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