रायपुर | संवाददाता: क्या आपको पता है कि 1858 में रायपुर में भी एक सिपाही विद्रोह हुआ था? छत्तीसगढ़ में अग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बगावत का ऐलान करने वाले, इस सिपाही विद्रोह में शामिल 17 लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया था.
लेकिन अफसोस कि आज इनमें से अधिकांश शहीदों को भुला दिया गया.
सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह को 10 दिसंबर 1857 को, रायपुर शहर में सार्वजनिक तौर पर मौत की सज़ा देने के बाद अंग्रेज़ों को उम्मीद थी कि वे इस इलाके में होने वाली किसी भी विद्रोह की संभावना को ख़त्म कर चुके हैं.
लेकिन ऐसा नहीं था.
नारायण सिंह को सज़ा-ए-मौत देने की घटना ने, धीरे-धीरे सुलग रही विद्रोह की आग को और भड़का दिया.
नारायण सिंह की शहादत के 39वें दिन 18 जनवरी 1958 को रायपुर में अंग्रेज़ों की तीसरी नेटिव इन्फैंट्री में सिपाही विद्रोह हो गया.
इस सिपाही विद्रोह के नायक थे अंग्रेजों की फ़ौज के मैग्ज़िन लश्कर हनुमान सिंह.
हनुमान सिंह ने अपनी तृतीय रेगुलर रेजिमेंट के मेजर, सिडवेल की हत्या कर के रायपुर में सिपाही विद्रोह की घोषणा कर दी.
राजस्थान के बैंसवाड़ा के रहने वाले हनुमान सिंह की इस हरक़त ने सबको चौंका दिया.
जंगल में आग की तरह यह ख़बर फ़ैली और लेफ्टिनेंट सी बी स्मिथ की अगुवाई में विद्रोहियों को चारों तरफ़ से घेर लिया गया.
विद्रोही सिपाहियों ने 6 घंटे तक मुकाबला किया लेकिन गोला-बारुद ख़त्म होने और अंग्रेज़ों की भारी फ़ौज के कारण उन्हें लहार का सामना करना पड़ा.
हनुमान सिंह तो अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए लेकिन उनका साथ देने वाले 17 सिपाहियों को गिरफ़्तार कर लिया गया.
इनमें आर्टिलरी-हवलदार, चौदह निजी और रेजिमेंट के दो सिपाही शामिल थे.
रायपुर के जिला आयुक्त चार्ल्स इलियट ने इन सबके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के निर्देश दिए.
सिपाही विद्रोह के चौंथे दिन 22 जनवरी को आज़ादी के मतवाले इन 17 लोगों को रायपुर में सार्वजनिक रुप से फांसी पर चढ़ा दिया गया.
जिन विद्रोहियों को फांसी पर चढ़ाया गया, उनके नाम थे-
गाजी खान
बल्ली दुबे
अब्दुल हयात
मुल्लू
शोभाराम
अक़बर हुसैन
नज़र मोहम्मद
शिवनारायण
शिव गोविंद
लल्ला सिंह
बल्लू
पन्नालाल
मातादीन
ठाकुर सिंह
परमानंद
दुर्गा प्रसाद
देवीदीन
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