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जब महिलाओं ने किया आरक्षण का विरोध…शरद, लालू और मुलायम ने काटा था बवाल..पढ़ें…किस डर से मनमोहन ने पेश नहीं किया बिल

बिलासपुर—नई संसद की कार्रवाई के पहले दिन भारत सरकार ने लोकसभा में महिलाओं को आरक्षण देने वाले ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के लिए संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है। अब देश की आधी आबादी को सदन में एक तिहाई सीट आरक्षित हो जाएगा। बिल के तहत लोकसभा के अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओं को एक तिहाई सीट का आरक्षण मिलेगा। इस तरह यदि बन गया तो लोकसभा में महिलाओं के लिए 181 सीटें आरक्षित हो जाएंगी।

बिल के अनुसार लोकसभा या विधान सभाओं में मौजूदा एससी-एसटी आरक्षण में  33 फ़ीसदी हिस्सेदार महिलाओं की होगी। इस समय संसद में राज्यसभा और लोकसभा को मिलाकर कुल 82 महिला सांसद हैं। बिल के अनुसार सिर्फ चुने हुए प्रतिनिधियों को ही बिल का फायदा मिलेगा। जाहिर सी बात है कि राज्यसभा या विधान परिषदों को बिल का लागू नहीं होगा।  बिल में इस बात का भी जिक्र है कि आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा। मतलब हर सीटें बदल जाएंगी। 15 साल बाद महिला आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा।

 27 साल पहले पेश हुआ आरक्षण बिल

जानकारी देते चलें कि सदन में पहली बार महिला आरक्षण बिल 27 वर्ष पहले पेश किया गया था।  लेकिन सोमवार की शाम दिल्ली में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बिल को पहली बार मंज़ूरी मिली है। बताते चलें कि महिला आरक्षण का मुद्दा 2014 और  2019 में बीजेपी ने संकल्प पत्र में शामिल किया था।  दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने बिल का समर्थन का एलान किया है।

 कांग्रेस ने किया बिल का समर्थन

कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया है. लेकिन उन्होंने कहा है कि संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने से पहले इस बारे में सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया जाना चाहिए था। बिल पर रहस्य की चादर डालने की बजाय, आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए था। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंरबरम ने प्रतिक्रिया दिया कि बिल का पेश होना कांग्रेस और यूपीए सरकार की जीत है। यूपीए सरकार के दौरान बिल संसद में पेश किया गया था। लेकिन पारित नहीं किया जा सका। बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती ने महिला आरक्षण बिल का समर्थन का एलान किया है।

 

जब आरक्षण का महिलाओं ने किया विरोध

इंदिरा गांधी ने 1975 में ‘टूवर्ड्स इक्वैलिटी’ नाम की एक रिपोर्ट लाया। रिपोर्ट में महिलाओं के आरक्षण की बात थी। लेकिन रिपोर्ट तैयार करने वाली कमिटी के अधिकतर सदस्य आरक्षण के ख़िलाफ़ थे। महिलाएं चाहती थीं कि आरक्षण के रास्ते से नहीं बल्कि अपने बलबूते पर राजनीति में आएं।

महिला नेतृत्व और विकास को मिलेगा बल

बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री ने संसद में कहा कि महिलाओं को अधिकार देने के और ऐसे कई पवित्र काम के लिए ईश्वर ने उन्हें चुना है। 19 सितंबर की इतिहास में अमर हो गया है। नए संसद भवन में सदन की पहली कार्यवाही के रूप में देश के इस नए बदलाव का आह्वान किया है। बिल का लक्ष्य लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है। हम चाहते हैं कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास को हम बल मिले।

देवेगौड़ा से नरेन्द्र मोदी तक

 महिला आरक्षण बिल वर्ष 1996 से अधर में लटका है। 1996 में तात्कालीन एचडी देवगौड़ा की सरकार ने  बिल को संसद में पेश किया था।  लेकिन पारित नहीं हो सका। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था। बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था।  33 फीसदी आरक्षण के भीतर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था।  लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था। देवगौड़ा सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद महिला आरक्षण बिल के विरोध में थे।

बिल का विधानसभाओं ने किया था विरोध

राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री काल में 1980 के दशक में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी, लेकिन राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था. उनका कहना था कि इससे उनकी शक्तियों में कमी आएगी

शरद यादव ने कहा…परकटी महिलाएं

जब जून 1997 में फिर महिला आरक्षण विधेयक को एक बार फिर  पारित कराने का प्रयास हुआ। शरद यादव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि  ”परकटी महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में क्या समझेंगी और वो क्या सोचेंगी.”।

अटल बिहारी को भी मिली असफलता

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया। लेकिन सहयोगी दलों ने बिल के कुछ बिन्दुओं को लेकर विरोध किया। फिर 1999, 2002 और 2003-2004 में भी वाजपेयी सरकार ने बिल पारित कराने का असफल प्रयास किया।

डरकर नहीं किया बिल पेश

2004 में कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने बिल पेश किया। फिर यूपीए सरकार ने 2008 में बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। इस दौरान बिल का बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने समर्थन किया। लेकिन बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका। क्योंकि बिल का विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं। दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि बिल पेश किया तो सरकार ख़तरे गिर जाएगी।

राष्ट्रपति की मुहर लगते बनेगा कानून

साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद बिल अपने आप ख़त्म हो गया। लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश किया गया है। लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा। और महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा।

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