रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य की जिस केते एक्सटेंशन खदान का विरोध किया था, अब उसी खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए सरकार जन सुनवाई करने वाली है. हसदेव के आदिवासियों ने इसका विरोध किया है.
राजस्थान सरकार को स्वीकृत और अडानी समूह के एमडीओ वाली पीईकेबी और परसा के अलावा यह तीसरी खदान है, जिसकी जन सुनवाई की प्रक्रिया शुरु की गई है.
हसदेव अरण्य में केते एक्सटेंशन कोयला खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए दो अगस्त को जन सुनवाई रखी गई है.
इस खदान में लगभग पांच लाख पेड़ काटे जाएंगे. यही कारण है कि राज्य के वन विभाग ने इस खदान का विरोध किया था.
इस परियोजना की वन भूमि डायवर्सन और भूमि अधिग्रहण पर, राज्य सरकार की गंभीर आपत्तियां रही हैं लेकिन अब राज्य सरकार ही इसके खनन की तैयारी में जुट गई है.
इससे पहले राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि अगले बीस सालों तक पीईकेबी खदान से राजस्थान सरकार की जरुरतें पूरी हो सकती हैं.
ऐसे में नए खदान केते एक्सटेंशन में खनन को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
केते एक्सटेंशन कोयला खदान की ड्राफ्ट ईआईए रिपोर्ट यानी पर्यावरण प्रभाव आकलन, मार्च 2021 में जारी की गई थी. इस रिपोर्ट का अध्ययन काल अक्टूबर से दिसम्बर 2019 है, जिसको तीन वर्ष से अधिक का समय हो चुका है.
इस संबंध में केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिनांक 8 जून, 2022 को जारी ऑफिस मेमोरेंडम के बिंदु क्रमांक (4) के अनुसार अगर आंकड़ों को तीन साल से अधिक समय हो गया है तो पूरी प्रक्रिया पुनः नए सिरे से करना ज़रुरी है.
लेकिन छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मण्डल पुराने अध्ययन के आधार पर ही यह जन सुनवाई कर रहा है.
मंडल की वेबसाइट पर भी 2019 की ही रिपोर्ट पड़ी हुई है.
केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित परियोजना की पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन हेतु टर्म्स ऑफ रेफरेंस दिनांक आठ जनवरी 2020 में जारी की गई थी.
इस टर्म्स ऑफ रेफरेंस में लिखा है कि इसकी वैधता तीन वर्षो के लिए है. जबकि अब चार साल हो चुके हैं.
केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिनांक 8 जून, 2022 को जारी ऑफिस मेमोरेंडम में किये बदलाव को देखते हुए टर्म्स ऑफ रेफरेंस को एक साल की अतिरिक्त वैधता दी जा सकती है, उस स्थिति में भी टर्म्स ऑफ रेफरेंस की वैधता समाप्त हो चुकी है.
उक्त ऑफिस मेमोरेंडम के बिंदु क्रमांक 6 (ii) के अनुसार टर्म्स ऑफ रेफरेंस की वैधता समाप्त हो जाने की स्थिति में लोक सुनवाई के आयोजन को स्वीकृत नहीं किया जा सकता.
आठ जनवरी 2020 को जारी टर्म्स ऑफ रेफरेंस में उल्लेखित अतिरिक्त शर्त क्रमांक 4 (iv) के अनुसार डीएफओ द्वारा इस बात की पुष्टि करते हुए एक पत्र जारी करना अनिवार्य है कि परियोजना क्षेत्र में कोई भी हाथी या अन्य वन्यजीव कॉरिडोर नहीं है.
इस पर परियोजना प्रस्तावक ने जवाब के तौर पर कोई हाथी या अन्य वन्यजीव कॉरिडोर नहीं होने की पुष्टि हेतु, कार्यालय वन संरक्षक (वन्यप्राणी) प्रोजेक्ट एलीफैंट, सरगुजा, द्वारा जारी एक पत्र ईआईए रिपोर्ट में प्रस्तुत किया है.
इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि प्रस्तावित केते एक्सटेंशन परियोजना लेमरू हाथी रिज़र्व के 10 किलोमीटर के दायरे में आती है, इसलिए इस परियोजना के वन भूमि डायवर्सन के प्रस्ताव हेतु अनापत्ति नहीं दी जा सकती. वन भूमि डायवर्सन के प्रस्ताव पर वन विभाग की आपत्ति के बाद भी पर्यावरण स्वीकृति की प्रक्रिया अपनाई जा रही है.
राज्य में लेमरु हाथी रिज़र्व 22 अक्टूबर, 2021 को छत्तीसगढ़ राजपत्र में प्रकाशित कर अधिसूचित किया जा चुका है. लेकिन परियोजना प्रस्तावक ने अपने ईआईए रिपोर्ट में इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी है.
राज्य के साधन विभाग द्वारा 19 जनवरी, 2021 को कोयला मंत्रालय के सचिव को पत्र जारी कर प्रस्तावित केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक हेतु कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 के तहत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर राज्य शासन द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई थी.
इन आपत्तियों का मुख्य कारण हसदेव अरण्य की जैव विविधता को संरक्षित करना, पर्यावरण संतुलन बनाए रखना और वन्यजीव रहवास को सुरक्षित रखना है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा हसदेव अरण्य के पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय महत्व, बांगो डैम का जलागम क्षेत्र, समृद्ध जैव विविधता और वन्य जीवों के महत्वपूर्ण रहवास के मद्देनज़र 26 जुलाई, 2022 को हसदेव अरण्य में प्रस्तावित सभी कोल ब्लॉक निरस्त किये जाने हेतु सर्वसम्मति से अशासकीय संकल्प पारित किया गया था.
भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट और अनुशंसा के अनुसार हसदेव में किसी भी खनन परियोजना को बढ़ावा देना, इस क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर अपरिवर्तनीय प्रभाव डालेगा.
इस अध्ययन के अनुसार खनन से हाथियों के कॉरिडोर और हैबिटैट पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं और नए खदान खुलने से मानव हाथी द्वन्द की स्थिति बेकाबू हो जाएगी और सरकार इसे संभाल नहीं पाएगी.
इतनी गंभीर पर्यावरणीय चेतावनियों को अनसुना करके हसदेव अरण्य में किसी भी नई परियोजना को आगे बढ़ाना एक आत्मघाती कदम होगा.
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