रायपुर। संवाददाताः जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लांच की गई नैनो यूरिया और नैनो डीएपी का उपयोग करने में छत्तीसगढ़ के किसान रूचि नहीं दिखा रहे हैं.
सोसाइटियों के अधिकारी नैनो यूरिया और डीएपी के उपयोग से होने वाले फायदे भी किसानों को गिना रहे हैं, लेकिन किसान पारंपरिक यूरिया और डीएपी की मांग कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की सोसायटियों में नैनो यूरिया 18 हजार बोतल और नैनो डीएपी की 300 बोतल का भरपूर स्टाक रखा हुआ है, लेकिन किसानों ने इसे खरीदने से मना कर दिया है.
राजनांदगांव जिले की सोसाइटियों में पारंपरिक यूरिया और डीएपी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है, बावजूद इसके किसान नैनो यूरिया और डीएपी के उपयोग से कतरा रहे हैं.
सोसायिटयों में नैनो यूरिया रखे-रखे एक्सपायर हो गया है, लेकिन उसे ख़रीदार नहीं मिल रहे हैं.
राजनांदगांव की सोसायटियों में इस बार यूरिया और डीएपी खाद के संकट के हालात निर्मित होने के आसार नज़र आ रहे हैं.
जिले में कृषि विभाग ने 28 हजार मैट्रिक टन यूरिया का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी तक 19 हजार मैट्रिक टन का ही भंडारण हुआ है, जिसमें से किसानों ने 14 हजार 453 मैट्रिक टन का उठाव कर लिया है.
सोसायटियों के पास सिर्फ 5 हजार मैट्रिक टन यूरिया ही शेष है.
यही हाल डीएपी का है. सोसायटियों और निजी दुकानों में सिर्फ 1302 मैट्रिक टन डीएपी शेष है.
देश में यूरिया और डीएपी की बढ़ती मांग की वजह से केंद्र सरकार ने नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को लांच किया था.
इसे उर्वरक क्षेत्र की विश्व की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने तैयार किया है.
नैनो यूरिया को 31 मई 2021 को लॉन्च किया गया था. भारत नैनो लिक्विड यूरिया लॉन्च करने वाला दुनिया का पहला देश है.
नैनो डीएपी 2 मार्च 2023 को लांच की गई थी.
लेकिन छत्तीसगढ़ समेत देश के अन्य राज्यों में नैनो यूरिया और डीएपी को लेकर ज्यादा उत्साह दिखाई नहीं दिया है.
नैनो यूरिया नैनो टेक्नोलाजी पर आधारित उर्वरक है, जिसका उपयोग पौधों और फसलों को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन प्रदान करने के लिए किया जाता है.
नैनो यूरिया उर्वरक किसानों के लिए एक स्थायी विकल्प के रूप में सामने लाया गया था.
दावा किया गया था कि इससे उन्नत फसल की पैदावार हासिल करने में मिलेगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के किसानों ने इसे लेकर ज़्यादा रुचि नहीं दिखाई.
कृषि विभाग का दावा है कि नैनो यूरिया, फसल में नाईट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करता है. यह फसल और पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बढ़ाता है. साथ ही फसल उत्पादन में वृद्धि करता है.
यह खाद की लागत को कम कर किसानों की आय में वृद्धि करता है.
नैनो यूरिया फसलों की गुणवत्ता में सुधार करता है. यह भूमिगत जल की गुणवत्ता सुधारने में भी मदद करता है.
इसके परिवहन और भंडारण में कम खर्च होता है. साथ ही ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है.
कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, 45 किलो की एक यूरिया बोरी की जगह पर 500 एमएल की नैनो बोतल तैयार की गई है.
खेतों में अच्छे उत्पादन के लिए दानेदार यूरिया को दो बार डालना पड़ता है, लेकिन नैनो एक बार ही पर्याप्त है और इसकी कीमत भी कम है.
धान का पौधा जब 25-30 दिन का हो जाता है, तब इसका उपयोग किया जाता है. इसका छिड़काव स्पेयर से किया जाता है.
फसल में बीमारी लग जाने पर दवा के साथ मिलाकर इसका छिड़काव किया जा सकता है. 500 एमएल नैनो यूरिया एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है.
किसानों का कहना है कि नैनो यूरिया को स्पेयर से छिड़काव करना पड़ता है. यह सबसे बड़ी समस्या है.
इसे पानी में मिलाकर छिड़कना पड़ता है. बिना बोर वाले किसान पानी कहां से लाएंगे. अगर खेत बीच खार में है तो और बड़ी समस्या है.
किसानों का कहना है कि इसकी कीमत जरूरत कम है, लेकिन इसके उपयोग में कई समस्याएं हैं. इसके छिड़काव में समय के साथ ही मजदूर की भी जरूरत पड़ती है.
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