रायपुर. जो कर्म किसी भी कामना की पूर्ति के लिए किया जाए है उसे काम्य कर्म कहते है. वैसे तो सभी लोग किसी ना किसी कामना या इच्छा पूर्ति हेतु ही कर्म करते है. संसार में धन, संपत्ति, वैभव, इन्द्रिय सुख हेतु किये गए कर्म काम्य कर्म होते है. जब अपत्य हिनता, कष्टमय जीवन और दारिद्र, शरीर के न छुटने वाले विकार भुतप्रेत, पिशाच्च बाधा, अपमृत्यू, अपघातों का सिलसिला साथ ही पुर्वजन्म में मिले पितृशाप, प्रेतशाप, मातृशाप, भ्रातृशाप, पत्निशाप, मातुलशाप आदी संकट मनुष्य के सामने निश्चल रुप में खडे हो.
इन सभी संकटो से निश्चित रुप से मुक्ती पाने के लिए शास्त्रोक्त काम्य नारायण बली विधान है. इस विधान के साथ नागबली का भी विधान है. किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में जो द्रव्य संग्रह किया होता है उसकी उस पर आसक्ती रह गई हो तो वह व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् भी उस द्रव्य का किसी को लाभ नहीं लेने देता इसके अलावा नाग या सर्प की इस जन्म में अथवा पिछले किसी जन्म में हत्या की गई तो उसका शाप लगता है. वात, पित्त, कफ जैसे त्रिदोष, जन्य ज्वर, शुळ, ऊद, गंडमाला, कुष्ट्कंडु, नेत्रकर्णकच्छ आदी सारे रोगो का निवारण करने के लिए और संतती प्राप्ति के लिए नारायणबली व नागबली का विधान करना चाहिए. कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेतीं. वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता.
ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है. यह दोष पीढ़ी-दर-पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए. आने वाली पीढ़ियों को भी यह कष्ट देता है. इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं, जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है. श्राद्ध पक्ष यही अवसर है, जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है. इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है. इसी तरह नागबलि भी होती है.
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