रायपुर | संवाददाता: क्या छत्तीसगढ़ में भी धान के खेत आने वाले दिनों में मलेरिया के लिए ज़िम्मेवार मच्छरों का घर बन सकते हैं? मेघालय में हुए एक अध्ययन के बाद यह सवाल छत्तीसगढ़ में भी मुंह बाए खड़ा है. अगर इसका जवाब ‘हां’ में हुआ तो आने वाले दिन मुश्किल भरे हो सकते हैं.
मलेरिया के मामले में छत्तीसगढ़ की स्थिति बहुत भयावह रही है.
इस भयावहता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 2019 में, छत्तीसगढ़ में देश की महज 2.29% फ़ीसदी आबादी थी लेकिन पूरे देश में मलेरिया के 18 फ़ीसदी मामले छत्तीसगढ़ में सामने आए थे. इनमें भी 76 फ़ीसदी मामले अकेले बस्तर के थे.
पिछले कुछ सालों में इस भयावहता पर काबू पाने की सफल कोशिशें भी हुई हैं.
लेकिन जंगल के इलाकों से मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का धान के खेतों की ओर बसेरा करना चिंता बढ़ाने वाला साबित हो सकता है.
यह सवाल ऐसे समय में सामने आया है, जब भारत ने 2030 तक चरणबद्ध तरीके से मलेरिया को खत्म करने का लक्ष्य रखा है.
संकट ये है कि धान और मलेरिया के रिश्ते को आज भी स्वीकार नहीं किया गया है.
मेघालय में हुए एक अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि आम तौर पर जंगल के इलाकों में रहने वाले, मलेरिया के लिए ज़िम्मेवार जीनस एनोफिलीज मच्छर ने अब धान के खेतों में अपना बसेरा शुरु कर दिया है.
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, शिलांग के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन में एनोफिलीज मच्छर की प्रजातियों और उसके कारण फैलने वाली मलेरिया पर व्यापक शोध किया.
इन वैज्ञानिकों के अनुसार मेघालय में एनोफिलीज मच्छर की दो दर्जन प्रजातियां हैं.
लेकिन मलेरिया फैलाने वाले दो वेक्टर- एनोफिलीज बैमाई और एनोफिलीज मिनिमस हैं.
इसके अलावा धान के खेतों में तेज़ी से अपना विस्तार करने वाले एनोफिलीज मैक्यूलैटस और एनोफिलिस स्यूडोविलमोरी, अन्य दो प्रजातियों के साथ मिल कर तेज़ी से मलेरिया का विस्तार करते हैं.
भारत की आजादी के समय यानी 1947 में, देश की 344 मिलियन आबादी में से लगभग 22% के इससे पीड़ित होने का अनुमान था.
इसके अलावा मलेरिया से प्रतिवर्ष 75 मिलियन मामले और 0.8 मिलियन मौतें होती थीं.
लेकिन धीरे-धीरे इस पर वैज्ञानिकों ने काबू पाने की कोशिश की.
हाल के वर्षों में मलेरिया की घटनाओं और मलेरिया के कारण होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी आई है। 2000 से 2015 की अवधि के दौरान, मलेरिया के मामले 2.03 मिलियन से 44% घटकर 1.13 मिलियन हो गए और मृत्यु दर 932 से 69% घटकर 287 हो गई.
फरवरी 2016 में भारत में मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा 2016-2030 भी शुरू की गई है.
चर्चित शोध पत्रिका लैंसेट की रिपोर्ट में इस बात को गंभीरता से रेखांकित किया गया कि किस तरह से धान उत्पादन करने वाले भारतीय राज्यों में मलेरिया की बीमारी का विस्तार कहीं अधिक है.
लैंसेट के इस शोध में बताया गया कि शोधकर्ताओं ने जब राज्यवार धान की खेती के क्षेत्र और औसत स्लाइड पॉजिटिविटी दर (2015-19) का मानचित्रण किया, तो मलेरिया का असर उन पांच राज्यों में अधिक था, जहां धान की खेती होती है.
इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, औडिशा और छत्तीसगढ़ शामिल थे.
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