भारत में जलवायु से जुड़ी बाढ़, सूखा और तूफान जैसी आपदाओं के कारण प्रति दिन औसतन 3,059 बच्चों को विस्थापन की पीड़ा सहनी पड़ती है। यूनिसेफ के अनुसार, देश में 2016 से 2021 के बीच 67 लाख बच्चों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगहों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की नई रिपोर्ट ‘चिल्ड्रन डिस्प्लेस्ड इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ के मुताबिक, फिलीपीन (97 लाख बच्चे) के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है जहां इन छह वर्षों में सबसे ज्यादा बच्चे विस्थापित हुए हैं।
वहीं, चीन में 64 लाख बच्चे विस्थापित हुए। इस दौरान इन तीन देशों के कुल 2.3 करोड़ बच्चों को विस्थापन की पीड़ा सहनी पड़ी। रिपोर्ट में 2020 में आए चक्रवाती तूफान अम्फान का भी जिक्र किया है, जिसमें बांग्लादेश, भूटान, भारत और म्यांमार में करीब 50 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था, जिनमें बच्चों की संख्या ज्यादा थी।
रोजाना औसतन 20 हजार बच्चे हो रहे विस्थापित
वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो दुनिया में रोजाना औसतन 20 हजार बच्चे विस्थापित हो रहे हैं। यूनिसेफ के अनुसार, 2016 से 2021 के बीच 44 देशों में करीब 4.31 करोड़ बच्चों को घर छोड़कर अपने ही देश में किसी दूसरी सुरक्षित जगह शरण लेनी पड़ी।
जब विस्थापित बच्चों की तुलना किसी देश में बच्चों की कुल आबादी से की जाती है तो डोमिनिका और वानुअतु जैसे छोटे द्वीपीय देशों में बच्चे तूफानों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इस लिहाज से बाढ़ से सबसे ज्यादा विस्थापित हुए बच्चे सोमालिया और दक्षिण सूडान के हैं।
95%तबाही का कारण बाढ़ और तूफान
रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में बच्चों के बढ़ते विस्थापन में बाढ़ और तूफान की बड़ी भूमिका है। न छह वर्षों में जितने भी बच्चे विस्थापित हुए हैं उनमें से 95 फीसदी मामलों में बाढ़ और तूफान जैसी मौसमी आपदाएं ही जिम्मेदार थीं। 2016 से 2021 के बीच बाढ़ के कारण 1.97 करोड़ और तूफान के कारण 2.12 करोड़ बच्चों को विस्थापन की मार झेलनी पड़ी। 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे अपने मां-बाप से बिछड़ गए।
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