समान लिंग वालों के विवाह को कानूनी मान्यता देने का भारत के सामाजिक ढांचे पर विपरीत असर होगा। इस तरह का विवाह मानव सभ्यता की प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध होगा। यह बात एक सामाजिक संस्था के सर्वे में सामने आई है। यह सर्वे सुप्रीम कोर्ट में समान लिंग के लोगों की विवाह की अनुमति की याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ है।
पुणे की संस्था दृष्टि स्त्री अध्ययन प्रबोधन केंद्र के सर्वे में लोगों ने कहा है कि इस तरह के लोगों के साथ रहने को विवाह का नाम देने से अराजकता को बढ़ावा मिलेगा और समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी। महिलाओं के बीच कार्य करने वाली संस्था ने देश भर में 13 भाषाएं बोलने वाले 57,614 लोगों के बीच यह सर्वे कराया है और समान लिंग वालों के विवाह के संबंध में उनके विचार जाने हैं। ये लोग समाज के हर तबके के और लगभग हर जाति और धर्म के हैं।
सर्वे में प्राप्त निष्कर्षों से पता चला है कि लोग मानते हैं कि इस तरह की शादी का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव महिलाओं, बच्चों और समाज पर पड़ेगा। सर्वे में 41 से 60 वर्ष के लोगों के वर्ग से सबसे ज्यादा 26,525 प्रतिक्रियाएं आई हैं। इनमें ज्यादातर लोग समान लिंग वाले स्त्री या पुरुष के बीच विवाह के विरोध में थे।
उनका मानना है कि इस तरह का विवाह सामाजिक और प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध होगा, जिसके भयंकर दुष्परिणाम होंगे। इससे कुछ दशकों बाद पूरा सामाजिक ढांचा ही चरमरा जाएगा। सर्वे में शामिल हुए 83.9 प्रतिशत लोगों ने समान लिंग वाले लोगों के बीच वैध वैवाहिक संबंध के विरुद्ध अपने विचार व्यक्त किए।
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