शानदार अभिनेत्री और दमदार राजनेत्री तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक नेता जे. जयललिता एक ऐसा नाम है, जो इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से हमेशा के लिए लिखा जा चुका है। कुछ लोगों के लिए उनका जीवन खुली किताब है तो कुछ लोगों के लिए रहस्यमई। उनके प्रशंसक उन्हें देवी स्वरूप मानते हैं, जबकि उनके विरोधी उन्हें धिक्कारते हैं।
तमिलनाडु की 6 बार मुख्यमंत्री रहीं जयललिता
को प्यार से लोग अम्मा बनाते थे। अपने जीवन में सफलता की उंचाइयां देखने वाली जयललिता ने बहुत संघर्ष भी देखा है। इस लेख में हम बात करेंगे जयललिता के बचपन के बारे में-
इस खबर का आधार जयललिता की जीवनी पर लिखी गई किताब ‘जयललिता- कैसे बनीं एक फिल्मी सितारे से सियासत की सरताज’ है, जिसके कुछ दिलचस्प किस्सो में से एक पहलू का जिक्र किया गया है। इस किताब को तमिलनाडु के मशहूर लेखक में से एक वासंती द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद सुशील चंद्र तिवारी ने किया है।
जयललिता
का बचपन का नाम ‘अम्मू’ था। अम्मू सिर्फ 2 साल की थी, जब उनके पिता जयराम की मृत्यु हो गई थी। वह काली और दुखत रात हमेशा जयललिता की यादों में ताजी रही। बचपन से ही अम्मू असाधारण खूबसूरती और प्रतिभा की धनी थीं। लेकिन पिता के निधन के बाद उनका जीवन बहुत उठापटक भरा रहा। निराशा भरे पलों में वह सदैव परेशान रहा करती थीं।
संघर्ष शब्द को जयललिता बचपन में भले नहीं जानती हों लेकिन उन्होंने उसकी गहराई भांप ली थी। पिता के निधन के बाद अपनी मां वेदा को उन्होंने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ पालते देखा। जयललिता की मां पति के निधन के बाद अपने मायके बेंगलुरू चली गईं थीं।
जयललिता के नाना एक कंपनी में साधारण सी नौकरी करते थे। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा था। उनका एक आम परंपरागत रूढ़ीवादी मध्यवर्गीय ब्राम्हण परिवार था।
जयललिता की मां वेदा पति के निधन के बाद अपने पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं। इसलिए वह एक आयकर कार्यालय में एक सेक्रेटेरियल काम करने लगी। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि वह इस नौकरी से सीमित आय ही कमा पा रही हैं और इससे व बच्चों की न्यूनतम जरूरतों को ही पूरा कर सकती हैं।
अम्मू की मां वेदा जब अपने मायके रहने गईं थीं उस दौरान उनकी छोटी बहन पदमा कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं। वहीं, दूसरी बहन अंबुजा विद्रोही टाइप की थीं और वह एयर होस्टेस बन चुकीं थीं। इस वजह से उनके पिता ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। बाद में अंबुजा ने अभिनय करना शुरू किया और नाम बदलकर विद्यावती कर लिया। इस दौरान बाद चेन्नई में बस गई। कुछ वक्त गुजरने के बाद अंबुजा ने वेदा से चेन्नई आकर उनके साथ रहने के लिए आग्रह किया, जिससे उनके बच्चे बेहतर स्कूल में पढ़-लिख सकें।
अम्मू की मां बेटा जब अपनी बहन के साथ चेन्नई में रहने लगीं। उस दौरान अंबुजा से मिलने आने वाले प्रोड्यूसर्स को लगा कि वेदा भी दिखने में किसी फिल्म स्टार से कम नहीं हैं। बहन के प्रेरित करने और अपने बच्चों को आराम दे जिंदगी व अच्छी परवरिश देने के लिए वेदा ने फिल्मों में काम करने का फैसला किया।
उस दौरान कन्नड़ फिल्मों के प्रोड्यूसर केम्पराज अर्श ने उन्हें भूमिका दी और जल्दी ही वह व्यस्त स्टार बन गईं। बता दें की फिल्मों में जाने के बाद वेदा ने अपना नाम बदलकर संध्या कर लिया था।
मां के फिल्मों में कदम रखने के बाद उनके जीवन का अशांत और उथल-पुथल भरा एक नया चरण शुरू हुआ। संध्या अपने व्यस्त जीवन से अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पा रही थीं ना ही वह उनका ठीक से ख्याल रख पा रहीं थीं। छोटी सी अम्मू को हमेशा अपनी मां की याद सताती रहती। दोनों बच्चे अपनी मां का घंटों काम से आने का इंतजार करते रहते थे।
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