रायगढ़। प्रदेश के जिन इलाकों में बिजली के कारखाने संचालित हैं, वहां के लोग प्रदूषण की भारी मार झेल रहे हैं। आलम ये है कि उद्योगपति बिना राखड़ बांध (ASH DYKE) के बिजली कारखाना चला रहे हैं, और उनके यहां से निकलने वाली रख को कहीं भी फेंक रहे हैं। ऐसा ही नजारा इन दिनों रायगढ़ जिले में देखने को मिल रहा है जहां प्रदूषण के खिलाफ NGT में प्रकरण होने के बावजूद कारखानों की राख यहां-वहां फेंकी जा रही है, जिससे यहां की जीवनदायिनी केलो नदी भी प्रदूषित हो रही है।
रायगढ़ जिले में दर्जनों कोयला आधारित बिजली के कारखाने संचालित हैं। ये कारखाने उत्पादित बिजली या तो सरकार को देते हैं या अपने यहां संचालित दूसरे कारखानों के लिए बिजली पैदा करते हैं। जिले के तमनार विकासखंड के ग्राम कसडोल में घंटेश्वरी मन्दिर के किनारे बेतरतीब ढंग से डाला गया फ्लाई ऐश सीधे केलो नदी के पानी में बह कर जा रहा है। इलाके के 14 गांव एवं रायगढ़ शहर की 5 लाख जनता निस्तार के लिए केलो नदी पर निर्भर है और इसका जल एक बार फिर राख से प्रदूषित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण मंडल रायगढ़ नींद में सो रहा है और कार्यवाही के नाम पर केवल जुर्माना वसूल रहा है।
नियम के मुताबिक कोयला आधारित बिजली कारखानों से निकलने वाली राख के लिए बांध का होना जरुरी है, और इसके लिए सख्त नियम हैं, मगर “चांदी के चम्मच” के आगे इस तरह के नियम शिथिल पड़ जाते हैं। रायगढ़ जिले में भी जिंदल के प्रमुख बिजली कारखाने को छोड़कर अधिकांश बिजली के उद्योग बिना ASH DYKE के संचालित हो रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण मंडल और संबंधित मंत्रालय ने इसकी अनुमति आखिर कैसे दे दी, यह सवालों के घेरे में है।
रायगढ़ जिले में जिन कारखानों के ASH DYKE नहीं हैं, उन्हें चंद्रपुर के बंद पड़े पत्थर खदानों में राख फेंकने का आदेश है, मगर जिन ट्रांसपोर्टरों को राख के परिवहन का काम दिया गया है, वे प्लांट से राख लेकर आसपास के जंगल, खुले मैदान, किसानों के खेत और नदी-नालों के किनारे फेंककर चम्पत हो जाते हैं। तमनार विकासखंड के ग्राम कसडोल में घंटेश्वरी मन्दिर के किनारे भी इसी तरह फ्लाई ऐश डंप किया जा रहा है। यहां डाला गया फ्लाई ऐश सीधे केलो नदी के पानी में बह कर जा रहा है। बताया जा रहा है कि यहां संचालित सिंघल स्टील एन्ड पॉवर प्लांट प्रबंधन द्वारा यह राख फेंकी जा रही है।
रायगढ़ जिले में बिजली कारखानों और ख़राब सड़कों से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ शिवपाल भगत द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT में वाद दायर किया गया है। इस मामले में दिल्ली में सुनवाई चल रही है और NGT की एक टीम पिछले दिनों जिले का दौरा करके भी गई है। बताया जा रहा है कि टीम ने उन सारे इलाकों का निरिक्षण किया है जहां बिना किसी अनुमति राख फेंककर इलाके और नदी-नालों को प्रदूषित किया जा रहा है।
रायगढ़ जिले के बिजली कारखाने यह दावा करते हैं कि उनके यहां से निकलने वाली राख का 70% हिस्सा जमीन समतल करने में इस्तेमाल हो रहा है, वहीं शेष राख से ईंटें बनाई जा रही है। आंकड़े के मुताबिक रायगढ़ जिले के बिजली कारखानों से साल भर में लगभग 24 लाख मीट्रिक टन FLY ASH निकलती है। दावों के मुताबिक इसके 30% हिस्से से 70 लाख ईंटें बनेंगी। इन ईंटों का इस्तेमाल कहां हो रहा है, ये सवाल NGT ने पूछा है। सच तो ये है कि कारखाना मालिकों के पास इसका कोई जवाब ही नहीं है।
बता दें कि 11 सितम्बर को NGT दिल्ली में मामले की सुनवाई है, जिसमे याचिकाकर्ता की ओर से उद्योगों को घेरने की तैयारी चल रही है।
बहरहाल रायगढ़ जिले में FLY ASH को लेकर जिस तरह पर्यावरण संरक्षण मंडल नींद में सो रहा है, उसी तरह जनप्रतिनिधियों को भी आम जनता के स्वास्थ्य के साथ हो रहे खिलवाड़ से कोई सरोकार नजर नहीं आ रहा है। देखना है कि यहां की जनता को इस प्रदूषण से मुक्ति मिलती है या वे इसी तरह त्रासदी भरा जीवन जीते रहेंगे।
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