सिलक्यारा सुरंग में जहां भूस्खलन हुआ बस वही एक मात्र हिस्सा था, जिसमें लोहे के गाटर नहीं लगे थे। यहां उपचार का काम किया जा रहा था कि वहां भूस्खलन हुआ और उसका मलबा करीब 60 से 70 मीटर के दायरे में फैल गया।
सिलक्यारा सुरंग के ऊपर से हो रही वर्टिकल ड्रिलिंग में लोहे के गार्टर को भेदना आसान नहीं होगा। रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे एनएचआईडीसीएल के अधिकारियों ने भी इसे बड़ी चुनौती बताया है। हालांकि, उनका कहना है कि गार्टर को काटने का कोई न कोई उपाय जरूर निकाल लेंगे।
दरअसल, सिलक्यारा सुरंग में जहां भूस्खलन हुआ बस वही एक मात्र हिस्सा था, जिसमें लोहे के गाटर नहीं लगे थे। यहां उपचार का काम किया जा रहा था कि वहां भूस्खलन हुआ और उसका मलबा करीब 60 से 70 मीटर के दायरे में फैल गया। इसके आगे सुरंग में लाइनिंग के साथ लोहे के गार्टर लगाए गए हैं।
सुरंग के अंदर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग में बार-बार बाधाओं के बाद अब ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की जा रही, जिसमें कुल 86 मीटर की ड्रिलिंग की जानी है जो कि सुरंग 305 मीटर के आसपास के प्वाइंट पर खुलेगी। हालांकि, बीच में लोहे के गार्टर बाधा बनेंगे, जिन्हें भेदना ड्रिलिंग मशीन की रिक के लिए काफी मुश्किल होगा।
अगर यहां कुछ भी गड़बड़ हुई तो सुरंग को भी नुकसान पहुंच सकता है। एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद का कहना है कि यह चुनौतीपूर्ण और मुश्किल काम होगा, लेकिन गार्डर की कटिंग के लिए कटर का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद सुरंग के अंदर तक एस्केप पैसेज तैयार हो जाएगा और अंदर फंसे श्रमिकों को बाहर निकाल लिया जाएगा।
देरी से ड्रिलिंग पर उठ रहे सवाल
हादसे के दूसरे दिन ही श्रमिकों को बचाने के लिए पांच प्लान तैयार कर लिए गए, जिसमें वर्टिकल ड्रिलिंग भी शामिल था। इसके लिए जरूरी मशीनें भी मंगवा कर रख ली गईं थीं, लेकिन वर्टिकल ड्रिलिंग पर काम हादसे के 14 दिन बाद रविवार से शुरू हुआ। यह काम शुरुआत में ही कर लिया होता तो अब तक 86 मीटर की ड्रिलिंग पूरी हो चुकी होती।
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