पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी व चमोली जिले से कई समूह घास व भांग के रेशों से बने उत्पाद मेले में हॉल नंबर पांच में उत्तराखंड के पवेलियन में लाए हैं। खास बात यह है कि यह कलाकार यहां लोगों को लाइव प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन वैश्विक चुनौती बन गया है। यह मानव समाज के सामने अब तक की बड़ी घटनाओं में से एक है। बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिए गांवों में कई प्रयोग किए जा रहे हैं। ऐसी ही प्राकृतिक चीजों का एक प्रयोग उत्तराखंड के गांवों में शुरू किया गया है। यहां बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल (स्थानीय भाषा में कंडाली) व भांग के पौधों के रेशों से जैकेट, शॉल, स्टॉल, मफलर और अन्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में उत्तराखंड से आए कलाकारों के हाथ का हुनर देश ही नहीं, विदेशी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। कलाकार अपने इस अनोखे हस्तशिल्प से लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग बना रहे हैं।
पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी व चमोली जिले से कई समूह घास व भांग के रेशों से बने उत्पाद मेले में हॉल नंबर पांच में उत्तराखंड के पवेलियन में लाए हैं। खास बात यह है कि यह कलाकार यहां लोगों को लाइव प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। इसमें यह कंडाली, मुंज घास व भांग के पौधों के तने से रेशा (फाइबर) निकालकर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाकर दिखा रहे हैं। साथ ही भीमल के रेशों से चप्पल व रिंगाल पौधे के तने से लैंप व शो पीस तैयार कर रहे हैं। यह उत्पाद लोगों को लुभा रहे हैं।
कंडाली को छूने से डरते हैं लोग
पहाड़ी जंगलों में पाई जाने वाली इस विशेष प्रकार की कंडाली घास को लोग छूने से डरते हैं, लेकिन कलाकार इससे कई चीजें तैयार कर अपनी कमाई का जरिया बना रहे हैं। पवेलियन में पौड़ी जिले से आए कलाकार भूपेंद्र सिंह रावत ने बताया कि यह घास प्राकृतिक रूप से उगती है। इसके तने को सुखाने के बाद मशीन में प्रोसेसिंग की जाती है। इसके बाद धागा बनता है। चार से पांच किलो घास से एक किलो धागा निकलता है। इसमें प्रति मीटर 900 से एक हजार रुपये की लागत आती है। रेशा मुलायम होने से कपड़ा तैयार करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। घास से बनी ये जैकेट 7 डिग्री सेल्सियस में भी गर्माहट का अहसास करवाती है |
महिलाओं के लिए बना रोजगार
हथकरघा व हस्तशिल्प को बढ़ावा दे रहे इस पवेलियन में पहाड़ों की संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है। कंडाली घास के रेशे से बनी जैकेट की कीमत तीन हजार रुपये से शुरू है। भांग के पौधों के तने के रेशों से बनी जैकेट पांच हजार रुपये से शुरू है। वहीं, घास से बनी टोकरी व डायरी दो से तीन सौ रुपये से शुरू है। पवेलियन के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य भर के अलग-अलग गांवों का चयन कर इन घास से महिलाओं को रोजगार भी दिया जा रहा है। वह बताते हैं कि अब तक दो हजार से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार दिया गया है। इस घास बनी चप्पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं। स्टॉल पर इनसे बने उत्पाद बेच रही प्रीति ने बताया कि उनके समूह में 60 महिलाएं हैं। वह कहती हैं कि इस घास ने उनकी आर्थिक परेशानी को दूर किया है।
खाने में भी स्वादिष्ट है घास
उत्तराखंड के पहाड़ों में काफी मात्रा में कंडाली व मुंज घास मौजूद है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन से इन घास पर असर पड़ रहा है। ऐसे में कलाकार अपने हुनर से इन रेशों को आकार देने के साथ उपयोगी चीजें बना रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में बिच्छू घास की पत्तियों को हरी सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालांकि, वर्तमान में लोगों के रहन-सहन, खान-पान का तौर तरीका बदलने से इसे गिने चुने लोग ही सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। मेले में देहरादून से आए अमर सिंह ने बताया कि कंडाली की सब्जी का स्वाद अन्य सब्जियों से बिल्कुल अलग होता है। इसमें पोषक तत्व की मात्रा अधिक होती है। वह कहते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक स्थानीय चीज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना इस तरह प्रभाव छोड़ेगी।
एक जिला दो उत्पाद को ध्यान में रखकर कार्य किया जा रहा है। इसमें ग्रामीण बढ़-चढ़कर शामिल हो रहे हैं। इससे उन्हें रोजगार भी मिल रहा है। उन्होंने बताया कि इन जैकेट काे देश ही नहीं, विदेश में भी प्रमोट किया जा रहा है। इसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं। -प्रदीप नेगी, पवेलियन डायरेक्टर, उत्तराखंड
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