चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस एकादशी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं. इस दिन भगवान श्री दामोदर की तथा भगवतगीता की पूजा का विधान है. इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर मंदिर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए. इस व्रत में दस चीजों के त्याग का महत्व है जिसमें जौ, गेहू, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर दाल, प्याज ग्रहण नहीं करना चाहिए. मौन रहकर गीता का पाठ या उपदेश सुनना चाहिए. पाप से बचना तथा हानि पहुचाने से बचना चाहिए. व्रत की समाप्ति पर दान-दक्षिणा कर फलो का भोग लगाया जाता है. व्रत की रात्रि जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है.
कथा
पुराण के अनुसार एक बार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान में दे दिया. प्रातःकाल राजा ने ऋषि को अपना राज्य सौपने हेतु निवेदन किया. ऋषि ने दक्षिणा में पाच सौ स्वर्ण मुद्राए और चाही. राजा को इसके लिए अपनी पत्नी और बेटे को बेचना पड़ा जिसे एक डोम ने खरीदा. इस प्रकार राजा तथा उनका परिवार डोम के अंदर श्मशान में कार्य करने लगे. इसी समय उनके पुत्र की सांप के काटने से मृत्यु हो गई. राजा दुखी होकर ऋषि गौतम से सलाह लेने गए और उनकी सलाह पर एकादशी का व्रत किया. जिससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनके राज्य, बेटा तथा सभी सुख एवं पृथ्वी पर अजर अमर होने का आर्शीवाद दिया.
कामदा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त जानिए
कामदा एकादशी व्रत पूजा की विधि
पूजा के समय विष्णु मंत्र का जाप करें
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