केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश में साढ़े तीन सौ से भी अधिक नदियां प्रदूषण से कराह रही हैं। वर्षों तक प्रदूषकों से भरी होने के कारण कई नदियों का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होने के कगार पर है, जिससे उनके ऊपर जैविक रूप से मृत होने का खतरा बना हुआ है। जल प्रदूषण भूमि और वायुमंडल को भी दूषित करता है और मानवता को गहरे संकट में डाल देता है।
लंदन की मशहूर टेम्स नदी को 1957 में जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था, क्योंकि जल प्रदूषण ने जलमार्ग में लगभग सभी पौधों और जानवरों के जीवन को नष्ट कर दिया था। हालांकि, छह दशक की लंबी जिद्दोजहद के बाद इसे पिछले ही साल प्रदूषण-मुक्त करने में कामयाबी मिली है। टेम्स के जैविक रूप से मृत होने और फिर जीवित होने की घटना वैश्विक समुदाय के लिए एक बड़ी सीख है। जल प्रदूषण पर नियंत्रण स्थापित नहीं करने से विविध दुष्प्रभाव देखने पड़ते हैं। मसलन प्रदूषण के कारण जल में आक्सीजन की मात्र में कमी आती है, जिससे जलीय जीवों का जीवन कष्टमय हो जाता है। वहीं प्रदूषित पानी से सिंचाई करने से उपजे अनाजों, फलों और सब्जियों में दूषित पदार्थो की सांद्रता उच्च हो जाती है, जिसके सेवन से बीमारियां और मौत दस्तक देने लगती है।
जल प्रदूषण आर्थिकी को भी प्रभावित करता है। विश्व बैंक के अनुसार, दुनिया में पानी की गुणवत्ता में गिरावट भारी प्रदूषित क्षेत्रों में संभावित आर्थिक विकास के एक तिहाई हिस्से को कम कर देती है। स्वच्छ जल आर्थिक विकास में महती भूमिका निभाते हैं। इसकी सुलभता जहां नागरिकों को जल जनित बीमारियों से बचाकर उसकी कार्य-क्षमता बढ़ाती है और आर्थिक बचत में भी सहायक होती है, वहीं पानी को पीने योग्य बनाने और प्रदूषित जल निकायों को साफ करने की मशीनरी पर हर साल अरबों रुपये खर्च हो जाते हैं। प्रदूषित जल निकायों में पर्यटन गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जिससे इस उद्योग को एक अरब डालर सालाना का नुकसान होता है।
जल प्रदूषण से लोगों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है, जिससे वे परिपक्व मानव संसाधन का रूप में विकसित नहीं हो पाते हैं। इस तरह जल प्रदूषण राष्ट्रीय आय पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। टिकाऊ विकास का छठा लक्ष्य सुरक्षित और किफायती पेयजल के लिए सार्वभौमिक और समान पहुंच की मांग करता है। हालांकि, यह तभी संभव है, जब लोग जलस्नेतों को प्रदूषित करना बंद कर दें और जल संरक्षण एवं संचयन एक बुनियादी कर्तव्य बन जाए तथा लोग पानी की बूंद-बूंद की कीमत समझने लगें। भू-पृष्ठ के तीन चौथाई हिस्से का जल से आच्छादित होने के बावजूद इसका केवल एक प्रतिशत हिस्सा ही हमारी पहुंच में है। अत: जल प्रदूषण के निदान और जल संरक्षण पर हमें गंभीरता दिखानी ही होगी।