केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां का कहना है कि मैंने ही उन्हें विधायक और सांसद बनाया। उन्होंने डॉ. पटेल के दल को कोर्ट के विवाद में डालकर खुद का अलग दल बना लिया। इस दुख के बोझ से दबी हूं। ऐसी बेटी के लिए कैसी खुशी, जिसने मां को ही गड्ढे में गिरा दिया हो।
कभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता… कभी मां की ममता…। कभी खीज भरा गुस्सा… कभी आशीर्वाद। बेटी के लिए कड़वी बात बोलकर फिर पलट जाना। कभी अपनाना… फिर फूटी आंख न सुहाना। ये सारे भाव अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल के अपनी बेटी अनुप्रिया पटेल के प्रति हैं। अयोध्या आईं कृष्णा पटेल ने पहली बार राजनीति के साथ परिवार की टूटन के बारे में दिमाग के बजाय दिल खोलकर बात की। वो कई बार भावुक हुईं। गला भरा। आंखें डबडबाई ही नहीं, बार-बार छलक भी पड़ीं। बेटी केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल के साथ रिश्तों की बढ़ती खाई के जिक्र पर कनपुरिया अंदाज में बोल पड़ीं… कभी दो कंटाप लगाए होते तो अनुप्रिया ऐसी न होतीं। पहले बोलीं- बेटी को मां की जरूरत नहीं। फिर कहा- यदि वो गलतियों को स्वीकार कर लें तो अपनाने में कोई हर्ज नहीं। कृष्णा पटेल पति और संगठन के संस्थापक डॉ. सोनेलाल पटेल के साथ काम कर चुके पुराने साथियों को शनिवार को लखनऊ में आयोजित होने वाले पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में शामिल होने का आमंत्रण देने आई थीं। पेश हैं अमर उजाला से बातचीत के खास अंश–
सवाल- बेटी अनुप्रिया के आने से ठीक पहले आपका अयोध्या आना क्या उन्हें चुनौती देना है?
जवाब- मैं अयोध्या ज्यादा आई हूं, अनुप्रिया कम आई हैं। मेरे पति सोनेलाल पटेल का अयोध्या से विशेष नाता रहा। उन्होंने 14-15 फरवरी 1999 को यहीं पर दलाई लामा की मौजूदगी में बौद्ध धर्म को अपनाया था। चार नवंबर को लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में संगठन का स्थापना दिवस समारोह है। इसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मुख्य अतिथि हैं। पटेल साहब के अयोध्या से जुड़े पुराने साथियों को बुलाने के लिए यहां आई हूं।
सवाल-बेटी की राजनीतिक कामयाबी पर एक मां होने के नाते आपको कभी गुमान नहीं होता?
जवाब- मैंने ही उन्हें विधायक और सांसद बनाया। उन्होंने डॉ. पटेल के दल को कोर्ट के विवाद में डालकर खुद का अलग दल बना लिया। इस दुख के बोझ से दबी हूं। ऐसी बेटी पर गुमान कैसे हो सकता है। उन्हें तो मां की जरूरत ही नहीं है। ऐसी बेटी के लिए कैसी खुशी, जिसने मां को ही गड्ढे में गिरा दिया हो।
सवाल- आपके दोनों हाथों में लड्डू हैं। बेटी सरकार में… आप विपक्ष में…।
जवाब- ये राजनीति नहीं है। बेटी का धोखा है। वह पिता की फोटो लेकर दूध-मलाई तो खा रही हैं, लेकिन पिता की मौत की सीबीआई जांच क्यों नहीं करा रही हैं? इसके लिए सक्षम होने के बावजूद अब तक कोई पहल नहीं की। डॉ. साहब पर लाठीचार्ज हुआ था। मै भी उनके साथ दो माह जेल में रही। पुलिस की यातना सही। इन्हें क्या पता दल कैसे खड़ा हुआ। सत्ता मिली तो एक झटके में दल को ही तोड़ दिया।
सवाल- आपके बीच की दूरियां कैसे दूर होंगी, यदि वह बुलाएं तो क्या आप जाएंगी।
जवाब- बेटी है, यदि मन में कुछ था तो मुझसे बात करतीं। दूर होने की उन्हें ही किसी ने राय दी। उसी के कहने पर आज भी चल रही हैं। आग लगाने वाले तो बहुत हैं और वही फिर तापते हैं। दो के बीच जब कोई तीसरा आ जाता है तो मतभेद और बढ़ जाता है। हम दोनों के साथ ऐसा ही हुआ। वो मुझे कभी नहीं बुलाएंगी। हां… गलतियां मान ले तो जरूर अपना लूंगी।
सवाल- आपकी एक और बेटी अनुप्रिया के साथ हैं, प्रापर्टी विवाद भी चरम पर है?
जवाब- प्रापर्टी का विषय भ्रमित करने के लिए लाया जाता है। प्रॉपर्टी मेरी है, जिसे चाहूंगी उसे दूंगी। जिस बेटी का साथ मिल रहा है वह बहुत छोटी है। उसे गुमराह कर दिया गया है। इसमें उसी तीसरे शख्स का हाथ है।
सवाल- एक पार्टी का स्थापना दिवस दो जगह? लोग किसे असली मानें?
जवाब-अनुप्रिया किसका स्थापना दिवस मना रही हैं? वह बताएं कि अपना दल (एस) का गठन कब? इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन है? यह जानने का अधिकार हर किसी को है। कल जब वह आएंगी तो यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए? डॉ. साहब के बाद पार्टी पर मेरा हक है। मैं तो यही कहूंगी कि परवरिश में कमी रह गई। कभी दो कंटाप लगाए होते तो ऐसी नहीं होती। मेरे छूट देने का नतीजा है।
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