दुर्गा प्रतिमाओं की तरह ही लक्ष्मी प्रतिमाओं के विसर्जन में भी कुछ श्रद्धालुओं ने आस्था का ही विसर्जन कर डाला। जिस लक्ष्मी माता की प्रतिमा को पूरे विधि-विधान से पंडाल में स्थापित किया, विसर्जन में विधि-विधान और मर्यादाएं भूल गए। नाचते-गाते तालाब और पोखरों तक पहुंंचे और विसर्जन की विधि को तिलांजलि दे दी। राजघाट पर बनाए गए कृत्रिम तालाब में प्रतिमाएं बिखरी पड़ी थीं। वस्त्र व शस्त्र निकालने की होड़ लगी थी। पूजन सामग्रियों को पैरों तले रौंद रहे थे।
मंगलवार दोपहर बाद से मां लक्ष्मी की प्रतिमाओं के विसर्जन का सिलसिला शुरू हो गया था। यह बुधवार को भी जारी रहा। बुधवार की शाम करीब चार बजे राप्ती नदी के तट पर बने कृत्रिम तालाब में प्रतिमाओं के विसर्जन का सिलसिला चल रहा था। इस बीच चार प्रतिमाएं विसर्जन के लिए लाई गईं। विसर्जन के दौरान जैसे ही प्रतिमाओं को तालाब में गिराया जा रहा था, वैसे ही पोखरे में मौजूद लोग प्रतिमाओं को खींच ले रहे थे और प्रतिमाओंं से साड़ी, गहने, नोटों की माला, लकड़ी सहित अन्य सामान निकाल ले रहे थे।
इसी दौरान ट्रैक्टर-ट्राॅली पर प्रतिमा लेकर नाचते-गाते युवक पहुंचे। कुछ युवक डीजे की धुन पर नाच रहे थे। करीब 15 मिनट नाचने के बाद वे प्रतिमा को घाट पर ले गए। वहां से उन्होंने प्रतिमा को सीधे पोखरे में गिरा दिया। इसके बाद उन्होंने यह तक देखने की कोशिश की कि उनकी प्रतिमा तालाब में ठीक तरह से विसर्जित हो गई या नहीं। प्रतिमा को बिना देखे ही वे घाट से निकल गए।
नोटों की माला पर था ज्यादा ध्यान
मां लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। ऐसे में मां लक्ष्मी की प्रतिमाओं में नोटों की माला जरूर होती है। बुधवार को जो प्रतिमाएं विसर्जन के लिए घाट पर पहुंच रही थीं, तालाब में गिरने के बाद तालाब में पहले से मौजूद युवक प्रतिमाओं से सबसे पहले नोटों की माला निकाल रहे थे। इसके अलावा नथिया सहित अन्य सामग्री भी वे निकाल रहे थे।
चारों ओर फैली थी पूजन सामग्री
मां लक्ष्मी की प्रतिमाओं के साथ घरों में सालभर जिस लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की पूजा होती है, उनका भी विसर्जन किया जाता है। इसके साथ ही पूजन-सामग्री और धार्मिक पुस्तकें भी लोग विसर्जन के लिए भेज देते हैं, लेकिन समिति के लोग उन्हें भी धोखा देते हैं। घरों में स्थापित लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के साथ ही धार्मिक पुस्तकों को वे इधर-उधर फेंक कर उनका अपमान करते हैं।
यह है विसर्जन का विधान
डॉ. जोखन पांडेय शास्त्री के अनुसार, प्रतिमा पंच महाभूतों से बनी होती है। इसलिए इसे पंच महाभूतों में विलीन कर देना ही विसर्जन कहलाता है। शास्त्रों में इसकी प्रक्रिया है। प्रतिमाओं को लेकर लोग पानी में उतरते हैं। फिर धीरे-धीरे जल में अर्पित कर देते हैं। विसर्जन के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि प्रतिमा खंडित न हो। प्रतिमा के खंडित होने पर अशुभ माना जाता है।
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