सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जोर देकर कहा कि भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराधों की कोई गुंजाइश नहीं है और घृणा फैलाने वाले भाषणों को लेकर आम सहमति बढ़ रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि घृणा फैलाने वाले भाषणों पर कतई कोई समझौता नहीं हो सकता और अगर सरकार इसे समस्या माने तभी इसका समाधान तलाशा जा सकता है। किसी भी घृणा अपराध से अपने नागरिकों को बचाना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है।
जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘जब घृणा अपराधों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की जाती तो ऐसा वातावरण बनता है जो बेहद खतरनाक होता है। इसे हमारी जिंदगियों से उखाड़ फेंकना होगा।’ शीर्ष अदालत एक मुस्लिम व्यक्ति काजिम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने आरोप लगाया था कि चार जुलाई, 2021 को एक स्क्रूड्राइवर गैंग ने धर्म के आधार पर उसके साथ दुर्व्यवहार और हमला किया था जब वह एक कार से नोएडा से अलीगढ़ जा रहा था।
पीठ ने इस मामले की सुनवाई शाम करीब छह बजे तक की, इस दौरान जस्टिस जोसेफ ने राजस्थान में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक मूक व्यक्ति पर हमला किया गया था और बाद में पता चला कि वह हिंदू था। उन्होंने कहा, ‘अगर आप इसकी (घृणा अपराध) अनदेखी करेंगे तो एक दिन यह आपके विरुद्ध होगा।’ साथ ही कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कुछ लोगों का आचरण सांप्रदायिक होता है। मामले की अगली सुनवाई तीन मार्च को होगी।
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