रायपुर| संवाददाताः छत्तीसगढ़ के कई इलाके में धान की पकी हुई फसल पर अदृश्य मकड़ियों ने हमला बोल दिया है. बेहद कम समय में यह मकड़ी पके हुए धान की बालियों को खोखला कर दे रही है.
धान की खेती करने वाले किसान इस साल कीट-पतंगों से जूझते रहे हैं. अब जब धान की फसल पक कर तैयार हो चुकी है तब मकड़ी धान की खड़ी फसलों पर हमला बोल रही है. इस मकड़ी के हमले में बालियां पूरी तरह से बदरा हो जा रही हैं. धान का रंग भी बदलकर लाल हो रहा है.
इस समस्या का कृषि वैज्ञानिक भी हल नहीं निकाल पा रहे हैं. इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है.
कृषि वैज्ञानिकों की माने तो इस बीमारी का नाम पेनिकल माइट है. इसे शीत बाइट, शीत माइट, राईस पेनिकल माइट भी कहा जाता है. आम बोलचाल में इसे लाल मकड़ी कहा जाता है. यह मकड़ी सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देती. इसे लीफ शीथ के अंदर देखने के लिए न्यूनतम 10x लेंस की आवश्यकता होती है.
प्रदेश में इन दिनों खरीफ धान की फसल लगभग पक कर तैयार हो चुकी है. इस बार अच्छी बारिश होने से किसान प्रति एकड़ औसतन 25 क्विंटल धान उत्पादन की उम्मीद लगाए बैठे थे. लेकिन अंतिम समय में देर से पकने वाली धान की खड़ी फसल पर बीमारी लगने से किसानों की हालत खराब है.
इस अदृश्य मकड़ी की शिकायत प्रदेश के कई जिलों में है. फसल के तनों व बाली के निचले हिस्से में लगने वाली यह मकड़ी दानों को पूरी तरह से नष्ट कर दे रही है. स्थिति यह है कि जिस खेत में इस मकड़ी का प्रकोप फैल रहा है, उस खेत की लगभग 25 से 30 फीसदी फसल बर्बाद हो जा रही है.
किसान फसल को इस मकड़ी से बचाने की जुगत में लगे हुए हैं. साथ ही इसकी जानकारी कृषि विभाग के साथ ही प्रशासन तक भी पहुंचा रहे हैं.
कृषि वैज्ञानिक इन कीटों से बचने के उपाय भी किसानों को बता रहे हैं लेकिन जब तक किसान इसका उपाय कर पा रहे हैं, तब तक यह मकड़ी फसलों को चट कर जा रही है.
किसानों ने बताया कि इस बीमारी का प्रभाव ज्यादा दिनों में पकने वाले धान स्वर्णा पर अधिक दिखाई दे रहा है.
रायगढ़, जांजगीर-चांपा, चिरमिरी, मनेन्द्रगढ़ क्षेत्र के किसानों का कहना है कि इस बीमारी का प्रकोप पिछले तीन-चार साल से लगातार दिख रहा है.
कोरोना के बाद इस बीमारी से हर साल फसल तबाह हो रही है.
किसानों का आरोप है कि अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के साथ सामंजस्य नहीं होने के कारण किसान बाजार के दुकानदारों के हिसाब से, फसलों पर कीटनाशक का छिड़काव करने मजबूर हैं. इससे भी फसल पर प्रभावित हो रही है.
धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव, बेमेतरा, कवर्धा के किसानों का कहना है कि शुरुआती दिनों में इस बीमारी का कुछ पता ही नहीं चलता.
धान की बाली जब बदरा होने लगे और धान का रंग बदलकर लाल होने लगता है, तब जा कर इसका पता चलता है.
हालत ये है कि कीटनाशक का छिड़काव करने के बाद भी इसका असर कम नहीं हो रहा है. कुछ किसानों का कहना है कि दो से तीन बार दवा का छिड़काव कर चुके हैं.
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेकर भी दवा डाला है. इसके बाद भी बालियों के बदरा होने का सिलसिला नहीं थम रहा है.
अब तो किसान इस बीमारी से परेशान होकर मजबूरी में समय से पहले ही धान की कटाई करा रहे हैं.
इस संबंध में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केन्द्र पाहंदा (अ) दुर्ग के ईश्वरी साहू का कहना है कि इस अदृश्य मकड़ी शीत माइट, राइस माइट की समस्या प्रदेश के लगभग सभी जिलों में हैं. यह सामान्य आंख से दिखाई नहीं देता. इसे 10x लेंस वाली दूरबीन से देखा जा सकता है. पिछले तीन चार सालों से यह समस्या काफी बढ़ी है.
उन्होंने इस बीमारी से निपटने के लिए स्पाइरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत एससी का 120 से 150 मिली और प्रोपिकोनाजोन 25 प्रतिशतईसी का 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी है. उनका कहना है कि यफेनथुरॉन 50 प्रतिशत डब्लू. पी. का 250 ग्राम और प्रोपिकोनाजोन 25 प्रतिशत ईसी का 150 मिली प्रति एकड़ की तरह से छिड़काव भी लाभकारी हो सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि धान की फसल लगभग पक चुकी है. ऐसे में दवा ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहा है.
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