रायपुर | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के जशपुर की एक चुनी हुई महिला सरपंच सोनम लकड़ा को पद से हटाने के सरकारी फ़ैसले को रद्द करते हुए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने राज्य सरकार को महिला सरपंच को एक लाख रुपये देने और सरपंच के ख़िलाफ़ साजिश करने वालों की जांच के निर्देश दिए हैं.
गौरतलब है कि 27 वर्षीय महिला सोनम लकड़ा ने 2020 में आयोजित साजबहार ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव लड़ा था. वह अच्छे अंतर से चुनी गई थी. इसी दौरान ग्राम पंचायत को कुछ विकास कार्य आवंटित किए गए थे, जिसमें सड़कों आदि के 10 निर्माण कार्य शामिल थे.
आरोप है कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा 3 महीने के भीतर कार्यों को पूरा करने के लिए कथित रूप से 16 दिसंबर 2022 को जारी एक पत्र ग्राम पंचायत को मार्च 2023 में दिया गया और सरपंच पर काम में देरी का आरोप लगाया गया था.
इसके बाद 26 मई 2023 सोनम लकड़ा को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और बाद में उन्होंने किसी भी देरी से इनकार करते हुए अपना स्पष्टीकरण दिया. लेकिन जनवरी, 2024 में उन्हें सरपंच के पद से हटा दिया गया.
उन्होंने राहत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उच्च न्यायालय द्वारा उनकी अपील को खारिज किए जाने पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि सीईओ ने मनमाना आदेश जारी किया, ऐसा प्रतीत होता है कि निर्माण कार्यों को पूरा करने में कितना समय लगेगा, इस बारे में कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी. न्यायाधीश ने अधिकारियों द्वारा एक महिला सरपंच को निशाना बनाने की भी आलोचना की, जो जमीनी लोकतंत्र में विश्वास करती है, सरपंच के रूप में निर्वाचित होने के लिए सभी बाधाओं को पार करती है और ग्रामीण क्षेत्र के विकास की दिशा में काम कर रही है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने मामले की सुनवाई की और निर्माण कार्य में देरी के बहाने निर्वाचित महिला सरपंच को अनुचित तरीके से परेशान करने के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई.
अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा-“यह मामला एक निर्वाचित सरपंच सोनम लकड़ा को हटाने में अधिकारियों की ओर से की गई मनमानी की सीमा को छूता है, जो एक युवा महिला है, जिसने छत्तीसगढ़ राज्य के एक सुदूर क्षेत्र में अपने गांव की सेवा करने के बारे में सोचा था. उसकी प्रतिबद्धताओं की प्रशंसा करने या उसके साथ सहयोग करने या मदद का हाथ बढ़ाने के बजाय, अपीलकर्ता ने अपने गांव के विकास के लिए जो करने का इरादा किया था, उसके साथ बिल्कुल अनुचित और अनुचित कारणों से अन्याय किया गया है.”
अदालत ने कहा- “निर्माण कार्यों में इंजीनियरों, ठेकेदारों और सामग्री की समय पर आपूर्ति के अलावा मौसम की अनिश्चितता भी शामिल है… जब तक यह नहीं पाया जाता कि कार्य के आवंटन या निर्वाचित निकाय को सौंपे गए किसी विशिष्ट कर्तव्य के प्रदर्शन में देरी हुई है, तब तक एक सरपंच निर्माण कार्यों में देरी के लिए कैसे जिम्मेदार हो सकता है… हम संतुष्ट हैं कि कार्यवाही शुरू करना एक कमजोर बहाना था और अपीलकर्ता को किसी न किसी झूठे बहाने से सरपंच के पद से हटा दिया गया है. तदनुसार, विवादित आदेश रद्द किए जाते हैं.”
अपने फ़ैसले में अदालत ने कहा कि “अपीलकर्ता अपने कार्यकाल के पूरा होने तक ग्राम पंचायत के सरपंच के पद पर बनी रहेगी. चूंकि अपीलकर्ता को परेशान किया गया है और उसे परिहार्य मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ा है, इसलिए हम उसे 1 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश देते हैं, जिसका भुगतान छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा 4 सप्ताह के भीतर किया जाएगा.”
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को निर्धारित अवधि के भीतर अपीलकर्ता को 1 लाख रुपये का मुआवजा जारी करने का आदेश दिया है. साथ ही अदालत ने महिला सरपंच सोनम लकड़ा के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों का पता लगाने के लिए जांच करने का निर्देश दिया. न्यायालय ने कहा, “राज्य को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों से राशि वसूलने की स्वतंत्रता होगी.”
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