जनसंख्या के साथ ही भारत पर कूड़े का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। अंदाजा इससे लगाइए कि दक्षिण एशिया का 80 प्रतिशत, जबकि विश्व का 13 प्रतिशत कूड़ा भारत में उत्पादित हो रहा है। चिंता की बात यह है कि देश में कुल उत्पादित कूड़े में से सिर्फ 28 प्रतिशत का ही निस्तारण हो पा रहा है।
हालांकि, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय के अधीन कार्यरत स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स और सत्व कंसल्टिंग ने जेपी मॉर्गन के साथ ग्रीन जॉब पर जो रिपोर्ट तैयार की है, वह इन चुनौतियों के बीच नौकरियों की राह भी दिखा रही है। कौशल विकास और प्रशिक्षण से सिर्फ ई-कचरा प्रबंधन में ही 2025 तक पांच लाख नई नौकरियां सृजित होने का अनुमान है।
रोजगार सृजन के तमाम प्रयासों के बीच विश्व के साथ ही भारत का भी जोर उन क्षेत्रों के विकास पर है, जो पर्यावरण के अनुकूल हों और उनमें रोजगार भी तैयार हों। इन्हें ग्रीन जॉब्स नाम दिया गया है। पर्यावरण से जुड़े क्षेत्रों में ही रोजगार को लेकर क्या चुनौतियां और संभावनाएं हैं, उसी पर स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स ने इसी माह रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिस तरह से भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है, उससे अनुमान है कि 2050 तक देश की 60 प्रतिशत आबादी शहरों में ही निवास करेगी। तब कूड़ा निस्तारण की चुनौती और अधिक बढ़ना स्वाभाविक है, क्योंकि कूड़ा उत्पादन चार प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने का आकलन है। वर्तमान में देश में कूड़ा बीनने वालों की संख्या डेढ़ से चार लाख के बीच है, जिनमें से 10 से 25 प्रतिशत ही व्यवस्थित ढंग से काम कर रहे हैं।
बाकी लोग प्रशिक्षण और उपकरणों के अभाव के कारण संक्रामक बीमारियों के जोखिम से भी घिरे हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कूड़ा निस्तारण से जुड़े इन सभी कामगारों को यदि नियोजित कर प्रशिक्षित किया जाए तो न सिर्फ इनके जीवन में सुधार आएगा, बल्कि देश में कूड़ा निस्तारण की क्षमता भी काफी बढ़ जाएगी। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि ग्रीन जॉब की सबसे अधिक संभावनाएं ई-कचरा के निस्तारण में हैं।
रिपोर्ट में तथ्य दिया गया है कि ई-कचरा उत्पादन में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है और यह प्रतिवर्ष 7-10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। देश का इलेक्ट्रानिक्स बाजार अभी लगभग 7500 करोड़ रुपये का है, जिसके वर्ष 2023 से 2027 के बीच 5.61 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इलेक्ट्रानिक्स उत्पादों की मांग बढ़ने के साथ ही ई-कचरा बढ़ना भी स्वाभाविक है।
विशेषज्ञों का आकलन है कि देश में प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख टन ई-कचरा उत्पादन होगा। इसके उलट अभी हाल यह है कि वर्तमान में यहां सिर्फ 7.8 लाख टन ई-कचरे की ही री-साइकिलिंग हो पा रही है। मैनुअल री-साइकिलिंग से अनौपचारिक रूप से 10 लाख कर्मचारी जुड़े हुए हैं। अभी इस क्षेत्र में 2025 तक पांच लाख नए रोजगार सृजित करने की क्षमता है। इसमें भी 40 प्रतिशत नई नौकरियां री-साइकिलिंग और मरम्मत-नवीनीकरण के क्षेत्र में मिल सकती हैं। ई-कचरे की कंटाई-छंटाई के लिए कुशल व प्रशिक्षित कामगारों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब इस दिशा में काम भी कर रहा है।
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