रायपुर| संवाददाताः छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में दलदली जमीन पर धान उगाने वाले किसानों को इस बार फिर अच्छी क़ीमत की उम्मीद है.
इस दलदली ज़मीन पर रोपाई से लेकर कटाई तक यहां घुटने से उपर कीचड़ में उतरकर काम करना पड़ता है. ज़िले में लगभग 29 हजार एकड़ जमीन दलदली है.
लेकिन कीचड़ भरी इस जमीन पर किसान जीराफूल, जौफूल, कालाजीरा और बादशाहभोग जैसी कई खुशबूदार प्रजाति के धान लगाते हैं. किसानों का दावा है कि दलदली ज़मीन में उगी फसल के स्वाद और खुशबू का कोई मुकाबला नहीं है.
इन धानों में जब बाली आती है तो पूरा क्षेत्र खुशबू से महक उठता है.
आमतौर पर छत्तीसगढ़ में किसान खेती का काम शुरू करने के लिए अच्छी बारिश का इंतजार करते हैं, लेकिन जशपुर के कुछ इलाकों के किसान इसके विपरीत बारिश थमने या फिर कम होने का इंतजार करते हैं. क्योंकि दलदली जमीन पर तेज बारिश के मौसम में खेती करना संभव नहीं है.
जैसे ही मानसून कमजोर हुआ, यहां के किसान खेते के काम में जुट गए. इस समय दलदली ज़मीन पर रोपाई का बेहद मुश्किल काम लगभग ख़त्म हो चुका है.
इस जमीन पर खेती का हर काम हाथ से ही करना पड़ता है. कोई भी काम के लिए मशीनों का सहारा नहीं ले सकते.
मताई के लिए ट्रैक्टर का भी उपयोग नहीं कर सकते. यहां तक कि बैलों को भी इन खेतों में उतारा नहीं जा सकता.
किसान लकड़ी के पाटा से कीचड़ के ऊपरी हिस्से को हटाकर खेतों को समतल करते हैं.
उसके बाद रोपाई के लिए खेतों में उतरते हैं.
किसानों का कहना है कि दलदली जमीन पर किसी भी प्रजाति के धान को नहीं लगा सकते. जो धान पकने में ज्यादा समय लेता है, उसी धान को यहां लगाते हैं.
इन प्रजाति के धानों में जौफूल या जवाफूल, कालाजीरा, सोनाजोरी, बादशाहभोग, गोपालभोग, जीराफूल, तुलसी मंजरी, तुलसी माला आदि हैं.
किसानों ने बताया कि दलदली जमीन के लिए जौफूल और काला जीरा सबसे उत्तम प्रजाति है.
यह पुरानी किस्म की धान है. इसे पकने में कम से कम 150 से 160 दिन लगते हैं.
कीचड़ वाली जमीन में खेती करने का एक फायदा यह भी है कि इसके लिए रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इसके लिए गोबर खाद ही पर्याप्त है.
दलदली जमीन की मिट्टी, पानी में डूबे होने के कारण सड़कर खाद का काम करती है.
कभी जरूरत पड़ भी जाए तो अधिकांश किसान, गोबर और मिट्टी से बनाया गया जैविक खाद का उपयोग करते हैं.
दलदली जमीन में उगे धान के चावल की मांग भी बाज़ार में हमेशा बनी रहती है.
यह चावल थोक में 90 से 100 रुपये किलो तक बिकता है.
किसानों का कहना है कि मांग इतनी है कि बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती है.
खरीदार घर तक पहुंचकर चावल ले जाते हैं. कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो एडवांस में पैसे दे कर रखते हैं.
कुछ किसानों का कहना है कि अब तो इस चावल की मांग दूसरे प्रदेशों से होने लगी है.
उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों में भी इसकी खेती के लिए इसके बीज ले कर जाते हैं.
जौफूल, कालाजीरा, सोनाजोरी, जीरा फूल जैसे चावल का उत्पादन करने वाले किसान इस धान को सहकारी मंडी में नहीं बेचते हैं.
किसानों ने बताया कि समर्थन मूल्य में सरकार हर पतले धान की एक ही कीमत देती है.
किसानों का कहना है कि सरकार ने बेहतर क्वालिटी के धान के लिए अब तक कोई योजना नहीं बनाई है.
सरकार ध्यान दे तो अपने आप में खुशबू समेटे इन प्रजातियों के धान की और अच्छी कीमत मिल सकती है.
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