रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हर ज़िले में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने श्रमिकों के लिए अन्नपूर्णा दाल-भात केंद्र खोले जाने की घोषणा की है. लेकिन इसके लिए चावल की आपूर्ति कहां से होगी, यह बड़ा सवाल है.
यह पहली बार नहीं है, जब श्रमिकों के लिए अन्नपूर्णा दाल-भात केंद्र खोले जाने की घोषणा हुई है.
तब के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2017 में अपनी सरकार के 5000 दिन पूरे होने पर श्रमिक सम्मेलन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रम अन्न योजना में 5 रुपये में भरपेट भोजन की घोषणा की थी. इसके लिए 50 करोड़ रुपये भी जारी किए गए थे.
इससे पहले 2004 से राज्य में दाल-भात केंद्र चल ही रहे थे.
लेकिन 2019 में केंद्र सरकार द्वारा चावल की आपूर्ति बंद होने के बाद से राज्य में दाल-भात केंद्र ने दम तोड़ दिया था.
हालांकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हर ज़िले में दाल-भात केंद्र शुरु करने की घोषणा 17 सितंबर को की है.
लेकिन राज्य में पिछले वित्त वर्ष से ही शहीद वीर नारायण सिंह श्रम अन्न योजना के तहत 21 दाल-भात केंद्र पहले से ही संचालित हो रहे हैं.
श्रम मंत्री लखन लाल देवांगन का दावा है कि शहीद वीर नारायण सिंह श्रम अन्न योजना के तहत पूरे छत्तीसगढ़ में दाल-भात केंद्र संचालित करने का ठेका एक निजी कंपनी को दिया गया है.
यह योजना पूरी तरह से श्रम विभाग की तरफ से संचालित है और इसमें किसी से मदद नहीं लेने की योजना है.
लखन लाल देवांगन के अनुसार राज्य सरकार की ओर से दाल-भात केंद्र के संचालकों को प्रति प्लेट 52 रुपये की राशि दी जाती है.
छत्तीसगढ़ में 5 रुपये वाले दाल-भात केंद्र की शुरुआत 2004 में रमन सिंह की सरकार ने की थी.
इस योजना की राज्य भर में प्रशंसा हुई. रमन सिंह एक ऐसे चेहरे के तौर पर उभरे, जिसे ग़रीबों के भूख की चिंता थी.
इस योजना के तहत दाल-भात केंद्र का संचालन करने वाली संस्था को सरकार चावल उपलब्ध कराती थी. इसका संचालन आम तौर पर स्वसहायता समूह किया करते थे.
हालांकि बाद के दिनों में इन दाल-भात केंद्रों का स्वरुप बदला और क़ीमत भी बढ़ी लेकिन यह सिलसिला 2019 तक जारी रहा.
इस दौरान इन अन्नपूर्णा दाल-भात केंद्रों में 10 रुपए में दाल-भात, 15 रुपए में दाल-भात-सब्जी और 20 रुपए में अचार और पापड़ के साथ दाल-भात-सब्जी मिलती थी. कुछ जगहों पर 30 रुपये में दो सब्जी के साथ यह थाली उपलब्ध थी.
2018 में कांग्रेस पार्टी की सरकार में भी दाल-भात केंद्र चलते रहे.
लेकिन इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए चावल की आपूर्ति बंद कर दी.
उस समय तक राज्य में 128 दाल-भात केंद्र संचालित थे.
19 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने राज्य को चिट्ठी लिख कर साफ़ कर दिया कि चावल की आपूर्ति केवल सरकारी संस्थाओं को की जाएगी. स्वसहायता समूह इसके लिए पात्र नहीं होंगे.
केंद्र सरकार ने ऐसे समय में दाल-भात केंद्र के लिए चावल देने से मना कर दिया, जब राज्य में आचार संहिता लागू था.
तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर कहा, ”2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही पहले किसानों का बोनस रोका और फिर अब दाल-भात केंद्रों के लिए चावल देने से मना कर दिया. छत्तीसगढिय़ा भोला जरूर होता है, पर कमजोर नहीं. छत्तीसगढ़ विरोध की मानसिकता वाले नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की प्रदेश की जनता ईंट से ईंट बजा देगी.”
इसका जवाब पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने देते हुए कहा, ”दाल-भात सेंटर गरीबों के लिए शुरू किए गए थे. इन्हें बंद करके सरकार ने साबित कर दिया कि उनका आर्थिक प्रबंधन कितना कमजोर है. केंद्र सरकार ने सिर्फ चावल देने से मना किया है. क्या राज्य सरकार चावल का इंतजाम नहीं कर सकती? यह प्रदेश की बदहाल आर्थिक स्थिति को दर्शाता है. सिर से पैर तक कर्ज में डूबने वाली सरकार की स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद क्या होती है, यह सोचने वाली बात है.”
19 मार्च 2019 की चिट्ठी का जवाब देते हुए तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 3 अप्रैल 2019 को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान को चिट्ठी लिखी कि चावल की आपूर्ति बंद करने से अनुदान और मान्यता प्राप्त 471 संस्थाओं को केंद्र से मिलने वाले 655 टन चावल की आपूर्ति भी बंद हो गई है.
उन्होंने चावल की आपूर्ति बंद नहीं करने का अनुरोध किया.
लेकिन केंद्र ने चावल की आपूर्ति करने से मना कर दिया.
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