देश के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश और मानसून की अनिश्चितता की आशंका के कारण सूखे का खतरा भी नजर आने लगा है। इससे निपटने के लिए केंद्र ने सभी राज्यों को आकस्मिक योजना बनाकर काम शुरू करने का निर्देश दिया है। केंद्रीय आपदा प्रबंधन समूह ने किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए सूखे की तैयारी पहले ही कर लेने को कहा है।
हालांकि, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने इस बार सामान्य वर्षा का अनुमान लगाया है। फिर भी केंद्र को आशंका है कि मानसून की स्थिति प्रतिकूल हो सकती है। ऐसे में राज्यों को सूखा प्रबंधन केंद्र बनाकर जिला स्तर पर कृषि आकस्मिकता योजनाओं को अपडेट करने, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि विश्वविद्यालयों से समन्वय कर आपात स्थिति के लिए तैयारी करने का निर्देश दिया है।
जिले की मिट्टी और मौसम के अनुरूप प्रोसेस्ड फसलों के बीजों को पर्याप्त मात्रा में तैयार रखने के लिए कहा गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर किसानों को अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया जा सके। आईसीएआर ने मंत्रालय को बताया है कि देश के 650 जिलों में अलग-अलग प्लान तैयार है, जिसे संशोधित किया जा रहा है। साथ ही, जिलों की मिट्टी के अनुरूप विभिन्न फसलों की 158 किस्में भी विकसित कर ली गई हैं।
जिलाधिकारियों को कहा गया है कि वे अपने जिले में सूखे के सभी संकेतकों की सतत निगरानी करें। वर्षा और जल संग्रहण की स्थिति और बुवाई की प्रगति पर भी नजर रखें। किसानों को भी वैसी फसलें लगाने की सलाह दी गई है, जिन्हें कम से कम पानी में उगाया-उपजाया जा सके। ग्रामीण विकास मंत्रालय को तालाब निर्माण, नहरों की सफाई, नलकूपों को ठीक करने और खराब पड़े पंपों को बदलने या मरम्मत करने का निर्देश दिया गया है।
देश में कुल खेती योग्य भूमि का लगभग 56 प्रतिशत भाग वर्षा पर आधारित है। जून से सितंबर तक लगभग 73 प्रतिशत वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है, जो खरीफ फसलों के लिए जरूरी है। ऐसे में प्रभावी प्रबंधन के जरिए सूखे के खतरे को कम किया जा सकता है। सूखा प्रबंधन की प्रारंभिक जिम्मेदारी राज्यों की होती है। लेकिन, केंद्रीय कृषि एवं किसान मंत्रालय समन्वय के साथ अतिरिक्त मदद और राहत की व्यवस्था करता है।
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