रायपुर | संवाददाता : केंद्र सरकार ने माओवादी हिंसा में हुई मौत के आंकड़ों में, मारे जाने वाले संदिग्ध माओवादियों की मौत के आंकड़ों को शामिल करना बंद कर दिया है. यही कारण है कि मौत के आंकड़े कम नज़र आ रहे हैं.
इससे पहले केंद्र सरकार माओवादी हिंसा के आंकड़ों में सुरक्षाबल, आम नागरिक और माओवादी, तीनों की ही गिनती को सार्वजनिक करता था. अब केंद्र सरकार माओवादी हिंसा से संबंधित मौत के मामले में केवल आम नागरिकों और सुरक्षाबलों को ही शामिल कर रही है.
रायपुर में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पिछले पखवाड़े दावा किया कि पिछले 40 साल के माओवादी इतिहास में यह पहली बार हुआ, जब 2022 में माओवादी हिंसा में हुई मौत का आंकड़ा सौ से कम रहा.
गृह मंत्रालय के अनुसार 2022 में केवल 98 लोगों की जान गई.
जबकि सीजी ख़बर के पास जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 के हर दिन के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार 2022 में माओवादी हिंसा में सुरक्षाबल, आम नागरिक और मारे गये माओवादियों की संख्या कम से कम 136 थी.
इस आंकड़े से यह बाद स्पष्ट हुई कि केंद्र सरकार ने जिन आंकड़ों का हवाला दिया है, उसमें मारे जाने वाले माओवादी शामिल नहीं हैं.
उदाहरण के लिए 2018 में आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल में 225 संदिग्ध माओवादी मारे गए.
इसी साल यानी 2018 में माओवादियों से आमने-सामने की लड़ाई यानी मुठभेड़ और माओवादियों द्वारा लगाए गए बारुदी सुरंग की चपेट में आ कर सुरक्षा बलों के 67 जवान मारे गए.
2018 में देश भर में माओवादी हिंसा में 173 आम नागरिक मारे गए.
इस तरह 2018 में माओवादी हिंसा की चपेट में आ कर 225 माओवादी, सुरक्षाबलों के 67 जवान और 173 आम नागरिक यानी कुल 465 लोगों की जान चली गई.
लेकिन केंद्र सरकार के अनुसार माओवादी हिंसा में 2018 में मारे जाने वालों के कुल आंकड़े 240 ही हैं. इन आंकड़ों में मारे जाने वाले माओवादी शामिल ही नहीं हैं.
उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ में 2018 में माओवादी हिंसा में सुरक्षा बलों के 55 जवान मारे गए थे. इसी तरह इस पूरे साल में 98 आम नागरिक मारे गये. इसके अलावा 2018 में 125 माओवादी भी मारे गए.
मौतों की यह कुल संख्या अकेले छत्तीसगढ़ में 278 है.
लेकिन केंद्र सरकार द्वारा 2018 में छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या केवल 153 दर्ज़ है.
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