जैन संत ने कहा कि माया हमें अगले भव में भी सताती है
राजनांदगांव 15 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारा ध्येय यह होना चाहिए कि हमने जो कर्म किए हैं ,उसका फल हमें इसी भव में मिले। माया हमें अगले भव में भी सताती रहती है। मनुष्य सागर में एक बूंद की तरह है जबकि शेष अन्य जीव हैं। यह जीव अनंत काल तक रहेंगे। इतिहास को देखें कि छोटे-छोटे पापों को छिपाकर लोगों ने कितना कष्ट सहा है। उन्होंने कहा कि आप अपने पाप की आलोचना करें और इसे साफ करें। इस कर्म का फल हमें इस भव में ही मिले।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारी माया हमें काफी नुकसान पहुंचाती है। हम कहां कहां माया नहीं करते। इस माया के लिए हमने कितने झूठ बोले और कितने को दुख दिया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति पाप करते जाता है और इस पाप की वजह से उसकी संवेदन शक्ति कम होती जाती है। पाप पहले विचार में आता है, फिर आचार में आता है और बाद में यह अनाचार में तब्दील हो जाता है। हम छोटी-छोटी एक्सपायरी डेट वाली चीजों (सम्मान) के लिए फूलते रहते हैं जो एक-दो दिन भी नहीं रहते। उन्होंने कहा कि धन का अभिमान हो जाए और हमने उसकी आलोचना भी नहीं की तथा माया की तो यह अगले भव में भी हमें सताते रहेगा।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि आपने कोई पाप किया है तो वह आपके स्मृति पटल में अंकित हो जाता है। यदि हमने इसकी आलोचना कर इसे साफ नहीं किया तो यह हमारे लिए आगे कष्ट का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि हम तो चाहते हैं कि अपने पापों को भूल जाएं किंतु क्या इसे हम भूल पाते हैं, जब तक यह हमारी स्मृति पटल में रहेगा हम इसे नहीं भूल पाते। संत श्री ने कहा कि हम मन बनाएं किसी पाप में एक कदम भी न बढ़ाएं क्योंकि यह दलदल है हमने इसमें एक कदम डाला तो यह अपने आप हमको खींच लेता है। दलदल से निकलने के लिए किसी का हाथ होना चाहिए और प्रभु का हाथ हमारे साथ है। हम उनका स्मरण करें और पाप के दलदल में जाने से बचे रहें। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।
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