रायपुर | संवाददाता: संयुक्त राष्ट्र संघ की नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की समिति ने, भारत पर जारी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की ज़मीन पर ग़ैरक़ानूनी कब्जे को लेकिन चिंता जताई है.
समिति ने कहा है कि आदिवासी समाज सबसे वंचित सामाजिक-आर्थिक समूहों में से है.
संयुक्त राष्ट्र संघ की इस समिति ने कहा कि वह इस बात को लेकर चिंतित है कि बिना उचित परामर्श और स्वतंत्र, पूर्व और सहमति के विकास परियोजनाओं और खनन तथा अन्य उद्योगों की गतिविधियों के कारण आदिवासी लोगों के भूमि अधिकारों को अक्सर खतरा होता है.
समिति ने इस बात को लेकर भी चिंता जताई है कि भूमि अधिकारों की रक्षा करने और आदिवासी लोगों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को अपर्याप्त रूप से लागू किया जाता है.
समिति ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में, जबरन और स्वतंत्र, पहले से सूचित किये या सहमति लिए बिना अधिग्रहित जनजातीय भूमि के 1,176 मामले अभी भी अनसुलझे हैं और इस मुद्दे पर अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया जा रहा है.
समिति ने सरकार से आग्रह किया कि वह सुनिश्चित करे कि आदिवासी समुदाय को अपने पैतृक भूमि और संसाधनों के स्वामित्व, उपयोग और विकास के अधिकारों को कानून और व्यवहार दोनों में मान्यता, सम्मान और संरक्षण मिले.
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