रायपुर : स्कूल शिक्षा विभाग में बीते साल विभाग के दिवंगतो के परिजनों का तथ्यो को छुपा कर अनुकंपा नियुक्ति हासिल करने का मामला चर्चा में रहा है..। इस दौरान विभाग के जिम्मेदार लोगो के लिए अनुकंपा नियुक्ति गले की फांस बन गई । इस पूरे प्रकरण में किसी ने शिकार और शिकारी में फर्क नही समझा…!
मामले की सुर्खियां बनते ही पहली कैंची शासन ने अपने विभाग के कर्मचारियों पर चलाई। कुछ अधिकारियों को इस दौरान निलंबित कर दिया गया। जिसकी जांच आज भी जारी है। जबकि नियम एक दम साफ थे। जिसका पालन करते हुए अनुकंपा नियुक्ति प्रकरण में हुई शिकायत के बाद शासन ने अपात्र अनुकंपा नियुक्ति पाने वालों को बर्खास्त कर दिया था।
मिली जानकारी के मुताबिकअनुकंपा नियुक्ति शासन की ओर से दिवंगत शासकीय सेवक के आश्रित परिवार को तात्कालिक आर्थिक सहायता के रूप में दी जाती है..!
अनुकंपा नियुक्ति के नियमों के अनुसार दिवंगत विवाहित शासकीय सेवक के परिवार में यदि पूर्व से ही परिवार के कोई अन्य सदस्य शासकीय सेवा में हैं तो परिवार के अन्य किसी भी सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता नहीं होगी..! अनुकंपा नियुक्ति के इसी नियम का पालन दिवंगत के परिजनों को करना था। कोई बात नही छुपानी थी। लेकिन कुछ लोग अपात्र होकर नौकरी हासिल करके खुद और शिक्षा विभाग के अधिकारियो पर मुसीबत का सबब बन गए ।
स्कूल शिक्षा विभाग की ओर एक आदेश मेंअनुकंपा नियुक्ति के संबध में कहा गया कि अंतिम रूप से नियुक्त आदेश जारी करने के पूर्व, कार्यालय में प्राप्त लंबित प्रचलित आवेदन पत्रों के नियमानुसार पारदर्शितापूर्ण परीक्षण के लिए जिला शिक्षा अधिकारी की अध्यक्षता में एक परीक्षण समिति गठित की जा सकती है.
जिसमें एक वरिष्ठ विकासखंड शिक्षा अधिकारी, एक वरिष्ठतम प्राचार्य, हा.से. तथा कनिष्ठ लेखा परीक्षक को शामिल किया जाए।
इसी कड़ी में पारदर्शितापूर्ण परीक्षण में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर्ता की दी हुई जानकारी व दस्तावेज के आधार पर परीक्षण अधिकारी और इस दल के सदस्य जांच परख करते है। सवाल उठता है कि गठित जांच दल पुलिसीया अंदाज में जांच तो करता नही है। नहीं उसे यह काम करने की कोई विशेष योग्यता भी नही है। मोहल्ले में मुनादी तो कोई करता नही है। ना ही दस्तावेजों से जुड़ी कोई ऐसी व्यवस्था प्रचलन में है जो एक क्लिक में आवेदन करते ही आश्रित के परिजन की सामाजिक आर्थिक और शासकीय सेवा से जुड़ी जानकारी का रिकार्ड मिल जाए।
अनुकंपा नियुक्ति के लिए जो भी होता है।आवेदक के बताएं आवेदन और उसके शपथ पत्र के आधार पर होता है..! अब तक देखा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति में गलत जानकारी और अनियमित के मामले को तब उजागर होते हैं जब कोई शिकायत कर्ता सामने आकर विभाग को कुछ जानकारी देता है। या फिर आपत्ति दर्ज करता है ..। ऐसा ही मामला स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों में पाया गया ..!
एक ओर स्कूल शिक्षा विभाग का ही कहना है की प्राप्त आवेदन पत्रों के परीक्षण में नियमानुसार संवेदनशीलता से विचार करते हुए, अनाधिकृत तौर पर अनावश्यक प्रमाण पत्र एवं दस्तावेज़ों की मांग आवेदक से न की जाये, किन्तु आवश्यक प्रमाण पत्र एवं दस्तावेज़ों की पूर्ति हेतु आवेदकों को उचित मार्गदर्शन देते हुए उन्हें अधीनस्थ कार्यालयों संस्था प्रमुखों के माध्यम से शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण कराया जावे।
अब सवाल उठता है कि इसमें दोषी वह है जिसने आवेदन दिया है या जिसने परीक्षण किया है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि नियोक्ता तो आवेदक के दस्तावेजों और शपथ पत्र के परीक्षण के आधार पर निर्णय लेता है। फिर अधिकारियों पर शासन की कलम चलाने की जरूरत क्यों है। सीधे गलत जानकारी देकर नौकरी हासिल करने वालो पर FIR क्यों नही की जाती है…? यदि ऐसा हुआ तो अनुकंपा नियुक्ति के फर्जी मामलो में शायद आए ही नही।