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सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बनी पत्थलगांव की ये मजार, जहां हर धर्म के लोग करते हैं इबादत

जशपुर. पत्थलगांव स्थित सुल्तान पीर बाबा की मजार आपसी भाईचारा और सांप्रदायिक सौहाद्र की मिसाल है. यहां सालाना उर्स के मौके पर सभी समुदाय के श्रद्धालुओं की भीड़ के दौरान अनेकता में एकता का नजारा देखकर लोगों का आत्मविश्वास बढ़ जाता है. पत्थलगांव के पास ग्राम इंजकों में एक ब्राम्हण परिवार द्वारा बनाई गई बाबा सुल्तान पीर की मजार पर गुरुवार को सालाना उर्स के अवसर पर सभी वर्ग के लोग श्रद्धा भक्ति के भाव से मन्नत मांगने पहुंचते हैं. वहीं मन्नत पूरी होने पर कई लोग यहां चादर भी चढ़ाते हैं.

सालाना उर्स के दिन दोपहर को पीर बाबा की पूजा समाप्त होते ही मजार पर सेवा करने वाले श्रद्धालु यहां इकट्ठा गरीब और जरूरतमंदों को चादर बांटने में जुट जाते हैं. मजार पर आए श्रद्धालुओं को भोजन भी कराया जाता है. सबसे दिलचस्प बात ये रहती है कि यहां पर उंच नीच और जाति धर्म की दीवारों से अलग हटकर पीर बाबा के भक्त भी एक ही कतार में प्रसाद ग्रहण करते हैं.

यहां पर बीते 20 वर्षों से पीर बाबा का सालाना उर्स के अवसर पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई समुदाय के लोग बगैर भेदभाव के इकट्ठा होते हैं. छोटी-छोटी बातों को बेवजह तुल देकर सांप्रदायिक सौहाद्र और आपसी भाईचारे के माहौल में आ रही कमी के बीच पत्थलगांव में हजरत सुल्तान पीर की मजार सांप्रदायिक सदभाव की अनूठी मिसाल बन गई है.

यहां पर बाबा सुलतान पीर की मजार की स्थापना करने वाले पं. रामधारी शर्मा के बड़े पुत्र अशोक शर्मा का कहना है कि अल्लाह, भगवान और प्रभु को अलग-अलग नामों से पुकारा जाने वाला ईश्वर एक है. उन्होंने कहा कि यहां पर विश्वास और आस्था की इंट स्थापित करने के बाद यहां सभी वर्ग के श्रद्धालुों की भीड़ ने इस बात को पुख्ता कर दिया है. पंडित अशोक शर्मा पत्थलगांव में अनाज और किराने के व्यवसायी हैं. लगभग दो दशक पहले अशोक शर्मा की मां गीता शर्मा को कैंसर ने बुरी तरह से जकड़ लिया था. गीता शर्मा के गले में हुए कैंसर का इलाज कराने में इस मध्यम वर्गीय परिवार ने अपनी सारी कमाई दवा और डाक्टरों की फीस में झोंक डाली थी. इसके बाद भी ये परिवार कैंसर मरीज को लेकर शहर-शहर भटकता रहा. अशोक ने बताया कि कैंसर का इलाज पर होने वाले भारी भरकम खर्च से उनका परिवार अच्छे खासे कर्ज के बोझ तले दब गया था. रायपुर और भिलाई के डाक्टरों ने इस मरीज की दशा देखकर परिजनों को साफ कह दिया था कि अब वे दवा के साथ दुआ का भी सहारा ले लें. ताकि मरीज कुछ दिन और अपने परिवार के बीच रह सके.

अशोख ने बताया कि कैंसर से जूझने के दौरान जब वे थक गए तो मंदिर-मस्जिद में जाकर दुआ मांगने लगे. इस दौरान किसी ने सलाह दी कि उनका पैतृक गांव हरियाण स्थित बरनाला जिले का नन्थला गांव में सुल्तान पीर बाबा के दरबार में जाकर फरियाद करो, तो मरीज को कुछ राहत मिल सकती है. इस विश्वास को लेकर अशोक शर्मा ने सुल्तान पीर बाबा की हरियाण स्थित मजार पहुंचकर दुआ मांगी और वहां की एक ईंट भी लेकर पत्थलगांव आ गए. इसी ईंट के पास चार चिराग दीप जलाकर उसने पूजा अर्चना शुरू की थी. तो घर में चमत्कारिक ढंग से परिवर्तन होने लगा. इसके साथ उसकी मां की दिनो दिन बिगड़ती स्थिति में भी सुधार होने लगा. मरीज की हालत सुधरने के बाद उसने मुंबई जाकर कैंसर अस्पताल में गीता शर्मा के गले का ऑपरेशन कराया था. यहां पर आपरेशन सफल होने के बाद भी मुंबई के चिकित्सकों ने मरीज को दो तीन साल तक ही बच पाने की उम्मीद जाहिर की थी.

अशोक ने कहा कि ऑपरेशन सफल हो जाने के बाद उनका विश्वास सुदृढ़ होने लगा था. उनकी मां की हालत में लगातार सुधार को देखक परिवार ने हरियाण से लाई गई ईंट को नींव में रखकर यहां सुलतान पीर की मजार स्थापित करा दी थी. उन्होंने कहा कि ये काम सहज तो नहीं था, पर विश्वास के बलबूते पर सब कुछ सरल होता गया. सबसे दिलचस्प बात ये है कि बाबा की दुआ से अशोक की मां ने करीब दो दशक तक का लम्बा समय अपने परिवार के साथ खुशी से बीताया.

पत्थलगांव में स्थित इस मजार के साथ आज अलग-अलग समुदाय के सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं. यहां के पार्षद विशु शर्मा ने बताया कि पत्थलगांव में पीर बाबा की मजार पर आयोजित सालाना उर्स के मौके पर आसपास के अन्य जिलों से भी विभिन्न समुदाय के लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं. यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होने पर उनके द्वारा बाबा की मजार में आकर चादर चढ़ाई जाती है. साल भर चढ़ाई गई इन चादरों को सालाना उर्स के दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों के बीच में बांट दिया जाता है. बाबा की मजार पर मुस्लिम समुदाय का मुजावर द्वारा नियमित रूप से पूजा की जाती है. इसके अलावा पीर बाबा की मजार को स्थापित करने वाले अशोक शर्मा रोज शाम होते ही मजार की साफ सफाई कर वहां रखे चार चिरागों को रोशन कर मजार पर इत्र लुभान से पूजा करता है. हर गुरुवार और शुक्रवार को यहां शाम होते ही श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है.

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