गुरुकुल कार्यक्रम में शनिवार को इंटरनेट मीडिया में बहस को लेकर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान सभी अतिथियों ने अपने पक्ष रखे। उन्होंने एक स्वर में इंटरनेट मीडिया में बहस के दौरान अनुशासन बनाए रखने पर जोर दिया। आजकल देखा जाता है कि बच्चे से लेकर बड़े तक इंटरनेट मीडिया में अनावश्यक टिप्पणी करने से बाज नहीं आते।
इसकी वजह से बच्चों के व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। बच्चे उग्र होते जा रहे हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ऐसे में सभी अतिथियों ने अंतत: स्कूलों में मनोवैज्ञानिक पीरियड लगाने पर जोर दिया और सभी कक्षाओं सहित स्कूलों में परिचर्चा के लिए बच्चों को एक मंच देने की बात कही, ताकि बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ ही अन्य मूलभूत ज्ञान दिया जा सके और बच्चों में सही गलत की समझ विकसित की जा सके। साथ ही खुले मंच की सहायता से बच्चों के हाव-भाव की भी जानकारी शिक्षकों को मिल सकेगी, जिसके बाद उनमें आवश्यक सुधार किया जाना संभव हो सकेगी।
डा शंपा चौबे, डीकेपीजी कालेज, रायपुर
प्राचीन समय से बहस तार्किक योग्यता के लिए जाना जाता है। तर्क ही पहले आता है। क्योंकि शंकराचार्य को भी तर्क का सामना करना पड़ा था। ऐसे में वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो इंटरनेट मीडिया में भी बहस होती है, लेकिन यहां टिप्पणियों न तो कोई सीमा होती है और न ही इनकी मानीटरिंग। इसकी वजह से लोग कुछ भी अनाप शनाप लिखते रहते हैं। ऐसे में इसकी मानीटरिंग जरूरी है।
शुभम साहू, संयोजक, वक्ता मंच
बच्चों का झुकाव आजकल मोबाइल की ओर ज्यादा देखने को मिलता है। प्राचीन काल में गुरुकुल समय से चलते थे, जिसमें अनुशासन होता था। वही अनुशासन हमें अब इंटरनेट मीडिया के उपयोग में दिखाना होगा। इसके लिए बच्चों के साथ ही पालकों को भी समझना होगा, कि वे किस तरीके से वातावरण में रहते हैं और इसका क्या असर बच्चों पर पड़ सकता है।
हेमलाल पटेल, वक्ता मंच
कोविड काल में मोबाइल बच्चों के हाथ में गया है और अब उन्हें इससे दूर रख पाना संभव नहीं दिखाई देता है। ऐसे में बच्चों को अनुशासित करने की जरूरत है। क्योंकि स्कूलों से भी अब होमवर्क सहित अन्य पाठ्य सामग्रियां बच्चोें को मोबाइल पर ही दी जाती हैं। ऐसे में हमें इसके लिए अनुशासित रखने की जरूरत है और इंटरनेट मीडिया पर बच्चों को व्यवहार के बारे में समझाना होगा।
यशवंत यदु, वक्ता मंच
मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग या फिर दुरुपयोग दोनों ही हमें ही समझना होगा। साथ ही बच्चों को भी इसी तरह से अनुशासित करना होगा कि वे इंटरनेट मीडिया में किस तरीके से विभिन्ना पोस्ट पर टिप्पणी करें या फिर किस तरीके से पेश आएं। वहीं, हमारी भी जिम्मेदारी है कि बच्चों की मानीटरिंग करें और उनकी गतिविधियों के साथ ही उनके व्यवहार में आ रहे परिवर्तन पर नजर रखें।
दिव्यांशु मेश्राम, राज कामर्स क्लासेस, रायपुर
बच्चों और पालकों के बीच आजकर संचार का अभाव देखने को मिलता है। क्योंकि बच्चे पालकों को न तो ज्यादा समय देते हैं और न ही पालक ही बच्चों को समय देते हैं। वहीं, बच्चे नौ महीने मां के गर्भ में और स्कूल जाने से पहले तक आसपड़ोस के साथ घर के माहौल में। ऐसे में बच्चे स्कूल पहुंचते तक वही करते हैं, जो कि उन्होंने सीखा है। इसलिए बच्चों की परवरिश में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
संतोष सामंत राय, शिक्षक, आदर्श स्कूल, देवेंद्र नगर
गुरुकुल शब्द से ही सभी कुछ शुरू होता है। नई पीढ़ी का संस्कार मां ही होती है। लेकिन आजकल बच्चे पालकों की बात ही नहीं मानते हैं। मां बाप जिस तरीके से व्यवहार करेंगे, ठीक उसी तरह का व्यवहार बच्चे भी करेंगे। इसलिए बच्चों में मोबाइल के प्रति अनुशासन लाया जाना चाहिए, कि वे इनका उपयोग किस तरह करें और किस तरीके से इंटरनेट मीडिया में पेश आएं।
डा ऋतु श्रीवास्तव, शासकीय उमा विद्यालय, डूमरतराई
इंटरनेट बहुत ही अच्छा प्लेटफार्म है। यहां अभिव्यक्ति की आजादी लोगों को मिलती है। लेकिन हमें इसके उपयोग के साथ ही अनुशासन को भी अपनाना होगा। क्योंकि इंटरनेट मीडिया पर हम जो कुछ भी डालते हैं वह सार्वजनिक हो जाता है। ऐसे में उन्हें अनुशासित रखना जरूरी है। इसके लिए बच्चों को एक खुला मंच देना चाहिए, जहां वे विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय रख सकें और हम मानीटरिंग कर सकें।
डा आकृति श्रीवास्तव, पीजी उमाठे, उत्कृष्ट स्कूल, शांति नगर
हम आजकल इंटरनेट मीडिया से घिर चुके हैं। यहां क्या चीजें पोस्ट की जा रही हैं और इन पर किस तरह की प्रतिक्रिया की जा रही है, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। साथ ही इनकी मानीटरिंग के लिए शासन स्तर पर व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही अभद्रता करने वालों से लेकर अनावश्यक टिप्पणियां करने वालों पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
ज्योति सक्सेना, व्याख्याता, जेआर दानी स्कूल
मोबाइल एक क्रांति है। साथ ही इंटरनेट के उपयोग से हम देश दुनिया से आसानी से जुड़ सकते हैं। लेकिन इनमें होने वाले पोस्ट और उन पर आने वाली प्रतिक्रियाएं कई बार अभद्र देखने को मिलती हैं। ऐसे में हमें बच्चों को समझाने के लिए स्कूलों में मनोवैज्ञानिक का एक पीरियड रखना चाहिए। जहां उन्हें नैतिक शिक्षा सहित अन्य अनुशासन की बातें सिखाई जानी चाहिए।
उर्मिला देवी उर्मी, साहित्यकार, रायपुर
इंटरनेट हमारे जीवन का अमूल्य अंग हो गया है। क्योंकि इसके कई फायदे और साथ ही नुकसान भी हैं। बशर्ते जरूरत है, इन्हें समझने की। क्योंकि आजकल लोग गलत चीजों को जल्दी ग्रहण करते हैं, बजाय अच्छी चीजों के। हमें इसका सदुपयोग करने के साथ ही इंटरनेट मीडिया के उपयोग को लेकर अनुशासित रहने की आवश्यकता है।
गिरीश कुमार, व्याख्याता, जेएन पाण्डेय स्कूल, रायपुर
बहस सार्थक और स्वस्थ होनी चाहिए। फिर वो चाहे इंटरनेट मीडिया में हो या फिर किसी अन्य प्लेटफार्म पर। यह तभी संभव हो सकता है, जब हम और हमारे बच्चे अनुशासित हों। बिना इसके सार्थक और स्वस्थ बहस संभव ही नहीं है। स्कूलों में नैतिक शिक्षा के साथ ही नियंत्रण और संस्कार की शिक्षा भी बच्चों को दी जानी चाहिए।