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हसदेव अरण्य: पंचायत सचिवों ने माना, खनन के लिए किया गया फर्जीवाड़ा

अंबिकापुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य की पंचायतों के सचिवों ने कहा है कि खदानों के लिए फर्ज़ी तरीके से प्रस्ताव तैयार किये गये थे. हसदेव अरण्य में अडानी के एमडीओ वाले कोयला खदानों के खिलाफ अनुसूचित जनजाति आयोग की सुनवाई में सरपंच सचिवों ने यह दावा किया.

मंगलवार को पंचायत सचिवों के बयान से खलबली मच गई है.

अनुसूचित जनजाति आयोग में फर्ज़ी ग्रामसभा की सुनवाई के मामले में साल्ही और घाटबर्रा के पंचायत सचिवों ने कहा कि खनन की सहमति का प्रस्ताव, ग्राम सभा की बैठक के बाद, उच्च अधिकारियों के दबाव में जोड़ा गया.

पंचायत सचिवों ने कहा कि ग्रामसभा की पंजी में भी बाद में गड़बड़ी की गई थी.

मंगलवार की सुनवाई में अनुसूचित जनजाति आयोग के पदाधिकारियों के अलावा, सरगुजा ज़िला प्रशासन और राजस्थान सरकार के अधिकारी भी उपस्थित थे.

परसा खदान प्रभावित साल्ही ग्राम पंचायत के सचिव छत्रपाल सिंह टेकाम ने आयोग के समक्ष यह स्वीकार किया कि उन पर दबाव बना कर साल्ही और हरिहरपुर की ग्रामसभा जो 27-01-2018 और 24-01-2018 को आयोजित की गई थी, ग्रामसभा सम्पन्न हो जाने के बाद, उसमें खदान से संबंधित 22 वां क्रमांक प्रस्ताव लिखवाया गया.

यह प्रस्ताव ही वह फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव है, जिसमें परसा खदान को सहमति देने की बात लिखी है, जिसका प्रभावित गांव के लोग लगातार जांच की मांग कर रहे थे.

छत्रपाल सिंह टेकाम ने बताया कि ग्रामसभा सूचना की तारीख से लेकर 15 दिन तक उन्हें बंधक बना कर तहसीलदार के कार्यालय में रखा गया. उन्हें घर भी नहीं जाने दिया गया था. टेकाम ने कहा कि ग्रामसभा की उपस्थिति पंजी तत्कालीन एसडीएम ने अपने कब्जे में रखी थी.

हसदेव के खदान

हसदेव अरण्य में राजस्थान सरकार को तीन कोयला खदान आवंटित हैं. ये हैं पीईकेबी, परसा और केते एक्सटेंशन.

इन तीनों खदानों को राजस्थान सरकार ने एमडीओ के तहत अडानी समूह को सौंप दिया है.

पीईकेबी यानी परसा ईस्ट केते बासन नामक खदान के पहले चरण की खुदाई 2028 तक होनी थी. लेकिन इसे छह साल पहले ही खोद कर ख़त्म कर दिया गया.

इस इलाके के आदिवासियों का आरोप है कि इन खदानों के लिए ग्रामसभा की ज़रुरी सहमतियां फर्जी तरीके से जुटाई गईं.

इसके बारे में न तो ग्रामीणों को कुछ पता था और ना ही पंचायत के दूसरे पदाधिकारियों को इस बारे में जानकारी दी गई थी.

यहां तक कि जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उनलोगों के भी फर्ज़ी हस्ताक्षर दस्तावेज़ों में किए गए.

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