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हसदेव अरण्य: परसा कोल ब्लॉक के लिए 96 हज़ार पेड़ों की कटाई शुरु

रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में अडानी के एमडीओ वाले परसा कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई शुरु हो गई है. कटाई का विरोध कर रहे आदिवासियों के साथ पुलिस ने बल प्रयोग भी किया है. इस घटना में कुछ आदिवासियों के घायल होने की भी ख़बर है.

दूसरी ओर पुलिस ने आरोप लगाया है कि पहले आदिवासियों ने पुलिस पर हमला किया, इसके बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा.

गौरतलब है कि हसदेव अरण्य की तीन खदानें परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंशन राजस्थान सरकार को आवंटित हैं. जिन्हें राजस्थान सरकार ने एमडीओ के तहत अडानी समूह को दे दिया है. इस खदान से निकलने वाले कोयले के एक बड़े हिस्से का उपयोग, अडानी समूह अपने बिजली संयंत्रों के लिए करता है.

परसा ईस्ट केते बासन के दो चरणों में खनन के अलावा अब परसा कोयला खदान में खनन के लिए पेड़ों की कटाई शुरु की गई है.

2009 में कराई गई वृक्ष गणना के अनुसार 30 सेमी से अधिक परिधि वाले, 2.47 लाख पेड़ परसा ईस्ट केते बासन में काटे जाएंगे. इसी तरह परसा में 96 हज़ार पेड़ काटे जाएंगे. इसके अलावा पिछले 15 सालों में उगे और बड़े हुए पेड़ों की संख्या एक लाख से अधिक होने की संभावना है. हालांकि 2009 के बाद से वृक्षों की कोई गणना नहीं की गई है.

गंभीर आरोप

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है कि परसा कोल ब्लॉक के लिए वन और पर्यावरणीय स्वीकृतियां फर्जी दस्तावेजों पर आधारित हैं. जिन्हें तत्काल रद्द करना चाहिए.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने अपने एक बयान में कहा है कि हसदेव के प्राचीन और अविघटित वन मध्य भारत का फेफड़ा कहलाते हैं. यहां के पेड़ और प्राकृतिक नदी नाले ही मध्य और उत्तर छत्तीसगढ़ में स्वच्छ जल वायु उत्पन्न करने का काम करते हैं. यहां के आदिवासियों ने सदियों से इन जंगलों को सुरक्षित रखा है, जिस कारण आज भी बिलासपुर और कोरबा जैसे शहरों में पीने का पानी मिल रहा है.

बयान में कहा गया है कि सन 2015 में हसदेव जंगल के तीन कोयला ब्लॉकों को भारी जनविरोध के बावजूद अदानी कंपनी को सौंपा गया था. इसके विरोध में निरंतर और व्यापक जन आंदोलन हुए है, जिसके कारण अभी तक एक ही कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासन खुल पाई है. अब आज से परसा खदान को खोलने के अवैध प्रयास जारी हैं.

फर्ज़ी स्वीकृति

छत्तीसगढ़ आंदोलन ने आरोप लगाया कि हरिहरपुर, साल्ही, फतेपुर की ग्राम सभाओं ने अभी तक वन स्वीकृति के लिए कभी सहमति नहीं दी है. हमेशा ग्रामसभा में खनन का विरोध किया है. पर कंपनी ने 2018 में सरपंच एवं सचिव पर दबाव करके फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के दस्तावेज बनाकर वन स्वीकृति हासिल की हैं.

वर्ष 2021 में 30 गांव से लगभग 350 से अधिक ग्रामीण 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर रायपुर पहुंचे थे, जहां राज्यपाल ने उन्हें आश्वासन दिया था कि कंपनी के विरुद्ध धोखाधड़ी की शिकायतों पर जांच होगी. छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और जनमत को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ विधान सभा ने सर्वसम्मति से 27 जुलाई 2022 को प्रस्ताव पारित किया था कि हसदेव के सभी कोयला खदानों को रद्द किया जाए. इसी वर्ष छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी कंपनी द्वारा फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के आरोप में जांच बिठाई है.

परन्तु इससे पहले कि अनुसूचित जनजाति आयोग की कोई जांच रिपोर्ट प्रस्तुत होती, या फिर राज्यपाल के आश्वासन पर कोई कदम उठाया जाता, या विधान सभा में इस मुद्दे को लेकर और कोई बहस होती, 16 अक्टूबर 2024 की रात से ही गांव में भारी फोर्स तैनात हो गई. दूसरी तरफ अपने जंगलों को बचाने ग्रामीण भी रात भर जंगलों में ही पहरा देते रहे. सुबह सुबह पुलिस ने लाठियों से उन पर प्रहार कर उन्हें जंगलों से निकाला है, जिस में कई आदिवासियों के हताहत होने की खबर आई है.

सरकार कार्रवाई करे

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सरकार से पूछा है कि उपरोक्त जांच रिपोर्ट के लिए कुछ दिनों का इंतजार क्यों नहीं हो पाया, और विधान सभा के प्रस्ताव को दरकिनार करना क्यों यकायक आवश्यक हो गया? एक लोकतांत्रिक सरकार के लिए इस प्रकार जनमत का खुला उल्लंघन करना अत्यंत शर्मनाक है, और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन यह मांग करता है कि परसा खदान के लिए हो रही पेड़ कटाई पर तुरंत रोक लगाई जाए.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सरकार से मांग की है कि ग्रामीणों की कंपनी के खिलाफ फर्जीवाड़े के शिकायत पर जांच रिपोर्ट तुरंत प्रस्तुत की जाए और जिन सरकारी और कंपनी के अधिकारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा हुआ है, उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए.

गुरुवार को सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और आदिवासी छात्रों ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सचिव से मुलाकात करके फर्जी ग्रामसभा की जांच रिपोर्ट और अनुशंसा तत्काल जारी करने की मांग की.

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