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1 मई श्रमिक दिवस पर विशेषः श्रमवीर वह चिराग है, जिसका अपना कोई मकां नहीं होता…. दीपक पाण्डेय

“””वह जिनके हाथ मे छाले है
पैरों मे विवाई है
उन्हीं के दम पर
रौनक आपके बंगले मे””
आई है””आदमगोडवीं जी को शत शत नमन “———1मई श्रमिक दिवस””—-‘
“मैं आपका नौकर नहीं आपका मददगार हुं ” I M not YOUR servant I M YOUR FACILITATOR — ये सोच जरूरी है””—।। इस सोच के संदर्भ में मैं यहां इसका जिक्र करना चाहूंगा भारत में 1907 में टाटा का स्टील प्लांट जमशेदपुर में आया । टाटा जीवन मूल्यों के सम्मान करने के नाम से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं ।उस दौर में जब कोई टेक्नोलॉजी नहीं थी । मांता पिता को अपने बच्चों का जन्म तिथि याद नहीं रहता था ।तब स्टील प्लांट में काम करने वाले प्रत्येक श्रमिकों कर्मचारियों के उनके जन्म दिनांक को सुबह उनके घर बधाई संदेश के साथ एक किलो मिठाई का पैकेट प्रबंधन द्वारा भिजवया जाता था । यह एक छोटा सा उदाहरण है  ।जो श्रमिकों को भावनात्मक रूप से प्रबंधन के.साथ जोड़ता है  । टाटा स्टील प्लांट 1907 में कमीशन किया गया था । भारत सरकार के द्वारा 1965 में बोनस अधिनियम लाया गया । टाटा स्टील प्लांट द्वारा 1930 में अपने संस्थान में कार्यरत श्रमिकों के लिए बोनस अधिनियम प्रभावशील कर दिया गया था । जिसका अनुसरण भारत सरकार ने किया man of values

1 मई को श्रमिक दिवस “””के रूप में विश्व मे मनाया जाता है  । 1886 में अमेरिका के शिकागो में “”हे””मार्केट के तांगा चलाने वाले समान ढोने वाले मजदूरों द्वारा 8 घंटे काम एवंम जीवन यापन के लिए सम्मानजनक वेतन को लेकर आंदोलन किया गया था । इसमें श्रमिकों के भीड़ में बम विस्फोट हो गया था  ।इसमें अनेक श्रमिको की मौत हो गई । पूरी दुनिया में 1 मई को श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है और मृत मजदूरों के रक्त रंजित कपड़े को लाल झंडे के रूप में तब से अपनाया गया । “”””भारत मे मई दिवस 1923 से वामपंथियों के द्वारा चेन्नई मे मनया गया और तत्पश्चात संपूर्ण देश.मै मई दिवस मनाया जा रहा है । भारत में 8 घंटे काम का प्रारंभ भारत रत्न परम श्रद्धेय बाबा साहब अंबेडकर के प्रयास से ही देश में लागू हुआ । 1942 में भारतीय श्रम सम्मेलन के सातवें सत्र में बाबा साहब ने काम के घंटे 12 से 8 घंटे करने का अधिनियम बनवाया  ।साथ ही आज देश में जो सामान्य जीवन यापन के लिए न्यूनतम वेतन अधिनियम प्रभावशील है इसका निर्माण भी बाबा साहब के कर कमलो से ही हुआ है । 1946 असेंबली में एक बिल न्यूनतम वेतन प्रदान किया जाना अनिवार्य संबंधी पेश किया गया  बाबा साहब के द्वारा….।  जो भारत में आज 1948 न्यूनतम वेतन अधिनियम के रूप में प्रभावशील है । श्रमिक क्षेत्र में बाब साहब का अतुलनीय योगदान है । फैक्ट्री एक्ट ,ट्रेड यूनियन एक्ट ,मातृत्व हित लाभ अधिनियम बाबा साहब की दूरदर्शिता के कारण ही आज देश में प्रभावशील  है । बहुत कम लोगों को यह पता है कि बाबा साहब का योगदान श्रमिकों के हित के लिए मिल का पत्थर है  ।उनका विजन देश में वंचित वर्ग के लिए आज भी प्रकाश स्तंभ है ।1946 में लेबर ब्यूरो की स्थापना हुई थी । तब परम श्रद्धेय बाबासाहेब अंबेडकर ने मजदूरों के आंदोलन हड़ताल केअधिकार को स्वतंत्रता का अधिकार बताते हुए उन्होंने कहा था कि उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करवाना गुलाम के रूप में व्यवहार करना होगा ।।

यह तो मई दिवस और भारत का ईतिहास है ।अभी विचारणीय विषय है श्रमिकों की दशा स्थिति जीवन स्तर में क्या परिवर्तन आया? आज हम 2024 में 1886को याद करके सिर्फ श्रद्धांजलि दे कर मजदूर एकता जिंदाबाद के नारे के साथ औपचारिकता पूरी नहीं कर सकते  । अभी श्रमिकों की स्थिति हमारे देश में कैसी है, हमारे राज्य में किस स्थिति में है?? यह एक विचारणीय प्रश्न है? क्या यह सच नहीं मई दिवस 1886 से लेकर अब तक सिर्फ संगठित मजदूरों का बनकर रह गया  । तथाकथित श्रमिक संगठन जिनकी लड़ाई बुनियादी नही ।अतिरिक्त सुविधा के मांग की है । संगठित श्रमिकों को लेकर आज के दिन “””दुनिया के मजदूर एक हो”” के नारे के साथ औपचारिकता निभा लेते हैं ।जबकि 1886में श्रमिक आंदोलन था वो शिकागो में वह तांगा चलाने वाले और असंगठित मजदूर के रूप में कार्य करने वाले श्रमिको ने किया था  ।लेकिन आज वह कहीं नहीं देश में श्रमिक आंदोलन संगठित क्षेत्र नियमित श्रमिक कार्य करते हैं  ।सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र तक ही सीमित है  । अभी भी असंगठित श्रमिकों का कोई यूनियन किसी भी मजदूर संघ के द्वारा विकास खंड, नगर स्तर, जिला स्तर , राज्य स्तर, पर और राष्ट्रीय स्तर पर है नहीं है ।असंगठित श्रमिकों के मध्य कार्य करने पर “ग्लैमर नहीं है ।श्रमिक संघ की कोई पहचान नहीं बनती  ।इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत श्रमिक संगठन इंटक, एटक, सीटू, बीएमएस, हिंद मजदूर पंचायत, बामसेफ, कामगार सेना, कागज में इनके असंगठित श्रमिक संगठन होंगे । व्यावहारिक धरातल में एक भी संगठन कार्यरत नहीं रहता । असंगठित श्रमिकों के मध्य कोई कार्य नही है  ।”क्या असंगठित श्रमिकों के जीवन स्तर उज्जवल भविष्य के निर्माण के बिना “सशक्त श्रमिक “सशक्त समाज, “सशक्त राज्य, “सशक्त देश ,का निर्माण संभव है?

कौन बनाता हिंदुस्तान देश का मजदूर किसान यह नारा बिना असंगठित श्रमिकों के सशक्त हुए हम कल्पना कर सकते हैं। 1996 में तत्कालीन स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी के द्वारा आजादी के बाद देश में पहली बार असंगठित श्रमिकों के सुरक्षित भविष्य सामाजिक सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए भवन संनिर्माण कर्मकार कल्याण अधिनियम 1996 प्रभावशील किया गया तथा छत्तीसगढ़ में तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह जी के द्वारा असंगठित श्रमिक कल्याण मंडल का गठन किया गया  । इन मंडल में पंजीकृत होने के पश्चात श्रमिकों को जन्म से मृत्यु तक के सहयोग का वादा है । प्रसूति सहायता राशि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, विवाह सहायता योजना ,मृत्युं सहायता राशि ,सामाजिक सुरक्षा की अनेक योजनाएं उनका लाभ उन श्रमिकों को प्रदान किया जाता है। परंतु शर्त यह है कि इसमें श्रमिक पंजीकृत हो । लेकिन जैसा आमतौर पर देखा जाता है पात्र श्रमिकों को लाभ प्राप्त नहीं होता । जो अपात्र हैं वह पहली पंक्ति में खड़े हो जाते हैं  लाभ लेने के लिए और पात्र श्रमिकों के अधिकार का हनन करते हुए समस्त लाभ प्राप्त कर लेते हैं । छत्तीसगढ़ राज्य “मानव श्रम संसाधन” में देश मे सबसे प्रथम और संपन्न धनवान राज्य है  ।कश्मीर से कन्याकुमारी तक कोई जिला शेष नहीं है जहां छत्तीसगढीया श्रमिक कार्य न करते हों । आज यह हमारा सामाजिक और नैतिक दायित्व है कि प्रत्येक छत्तीसगढ़ के पात्र श्रमिकों का पंजीयन हो  ।श्रमिकों का उत्थान सिर्फ कानून के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता  ।इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए । चाहे आपके घर में काम करने वाली बाई हो ….झाड़ू पोछा करने वाली हो या आपके आसपास कोई रिक्शा चलाता हो…. कोई ऑटो चलाता हो.. कोई रेजा हो, कुली हो, सड़क निर्माण करता, हो माली हो, बगिया मे कम करता हो, पुताई करने वाला हो, छोटे से लेकर बड़े स्टार होटल में कार्य करने वाला हो, टेंट हाउस कैटरिंग जहां भी श्रमिक कार्य करते हैं -उन सब को एक बार पंजीयन के लिए प्रेरित अवश्य करना चाहिए । “”क्या आपने अपनी जिंदगी में कभी जो अंधेरे में था उसके घर रोशनी लाने का प्रयास किया””  । यह सत्य है श्रमिक नौकर नहीं । हमें सुविधा प्रदान करने वाले मददगार है । जो सम्मान के पात्र हैं——-मेहनतकश आवाम. को सलाम”—
“”श्रमवीर वह चिराग है जिसका अपना कोई मकां नहीं होता
वो जहां रहेगा रोशनी करेगा “”””————-
दीपक पाण्डेय
भूतपूर्व सहायक श्रम अधिकारी छग.शासन बिलासपुर

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