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NEET RESULT 2022 I देश की प्रतिष्ठित नीट परीक्षा के नतीजे आज घोषित हो गए। इस परीक्षा को लेकर छात्रों में कितना क्रेज था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि परीक्षा में इस वर्ष 18 लाख से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया है। इन्होंने देश के 612 मेडिकल कालेजों की 92 हजार 793 सीटों में प्रवेश के लिए दिनरात की मेहनत के बाद सपने संजोए हैं। मेडिकल कालेज में एक अदद सीट पाना कितना कठिन है यह छात्रों की संख्या और सीटों का अनुपात बताता है। सफल परीक्षार्थियों का औसत पांच फीसदी से भी कम होता है। यानी बीस में से केवल एक ही परीक्षार्थी को एमबीबीएस में प्रवेश मिल पाता है। परीक्षार्थियों के बीच मारामारी पहले एक सीट की है तो उसके साथ प्रतिष्ठित मेडिकल कालेज में प्रवेश पाने की।
इसकी एक बड़ी वजह मेडिकल की पढ़ाई का फीस स्ट्रक्चर भी है।
नंबर वन मेडिकल कालेज की फीस 6400 रुपए
आपको जानकार हैरानी हागी कि देश की नंबर एक मेडिकल कालेज की फीस किसी प्राइमरी स्कूल से भी कम है। देश का टॉप मेडिकल कालेज आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेस यानी एम्स, पूरे देश में सबसे अव्व्वल माना गया है। इसकी फीस महज 6 हजार 400 रुपए है। वह भी पहले साल 16 सौ रुपए देने के बाद बाकी सालों में यह करीब 1500 रुपए होती है।
एनआईआरएफ करता है रैंकिंग
टॉप कालेजों का निर्धारण एनआईआरएफ वार्षिक भारतीय रैंकिंग संगठन करता है जो निर्धारित मापदंडों के आधार पर विभिन्न संस्थानों को रेट करता है। मेडिकल के अलावा विश्वविद्यालयों सहित इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट आदि श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ संस्थानों को शामिल किया जाता है। प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान के लिए अनुमानित स्कोर एनआईआरएफ मानकों पर आधारित होते हैं जो संस्थान को सभी पहलुओं से देखते हैं। इसमें टीचिंग, लर्निंग एंड रिसोर्सेज, रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रैक्टिस , ग्रेजुएशन आउटकम्स, आउटरीच आदि पैरामीटर शामिल हैं, जिसके आधार पर रैंकिंग की जाती है।
जानिए टॉप फाइव कालेजों के बारे में
1. एम्स दिल्ली
एम्स देश का सबसे बड़ा मेडिकल कॉलेज और मेडिकल रिसर्च पब्लिक यूनिवर्सिटी है जो नई दिल्ली में स्थित है। एम्स में एडमिशन पाना वैसा ही है जैसे यूपीएससी की परीक्षा में टॉप करना। एम्स दिल्ली से पढ़ाई करने वालों का मेडिकल फील्ड में अलग रुतबा और सम्मान है। एम्स की स्थापना 1956 में हुई थी। यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन स्वायत्तता से संचालित होता है। बीते कई वर्षों से यह टॉप पर बना हुआ है। इस बार इसका स्कोर 91. 60 है। इसकी फीस बेहद कम है। करीब 6400 रुपए में पढ़ाई पूरी हो जाती है।
2. पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़
दूसरे स्थान पर है स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, चंडीगढ़ में स्थित एक चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान है। इसमें शैक्षिक सुविधाएं, चिकित्सा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण सुविधाएं दी जाती हैं। यह 79.00 स्कोर के साथ दूसरे नंबर पर है।
3. क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर (बेंगलुरु)
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज(सीएमसी), वेल्लोर को देश के टॉप कॉलेज में गिना जाता है। सीएमसी वेल्लोर एक निजी, अल्पसंख्यक-संचालित मेडिकल स्कूल, अस्पताल और अनुसंधान संस्थान है। इसकी स्थापना 1900 में एक अमेरिकी मिशनरी द्वारा की गई। यह कॉलेज 72.84 स्कोर के साथ तीसरे स्थान पर है।
4. नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस, बेंगलुरु
बेंगलुरु में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस को एशिया के टॉप मानसिक संस्थानों में गिना जाता है। यह नेशनल मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो के फील्ड में एक मल्टीडिसीप्लिनरी इंस्टीट्यूट है। इसकी स्थापना वर्ष 1847 में की गई थी। इसका स्कोर 71.56 है।
5. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी , उत्तर प्रदेश
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इसे बीएचयू (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) भी कहा जाता है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में की गई थी । इसके मेडिकल इन्सिट्यूट का स्कोर 68.12 है।
इसके अलावा संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ अमृता विश्व विद्यापीठम, कोयंबटूर, जवाहरलाल स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान पुद्दुचेरी, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल का नाम मेडिकल कालेजों में सम्मान के साथ लिया जाता है। हर छात्र का सपना इन्हीं में से किसी एक कालेज में पाना होता है।
यूक्रेन, कजाखस्तान और चीन में 25 लाख की फीस
जहां देश के सरकारी कालेजों की फीस तीन लाख रुपए तक है, वहीं यूक्रेन, रूस, कजाखस्तान और चीन में यह 25 लाख से 30 लाख रुपए होती है। भारत के निजी कालेजों की फीस 50 लाख से 1 करोड़ तक पहुंच जाती है। इसलिए देश के वे छात्र जो सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं पा पाते, देश के निजी काॅलेजों के बजाय यूक्रेन, रूस, कजाखस्तान आदि देशों में एमबीबीएस करने चले जाते हैं। हालांकि इन देशों से एमबीबीएस करके आए छात्रों को प्रेक्टिस शुरू करने से पहले भारत में एक परीक्षा देनी होती है जिसे उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
इसी वजह से यूक्रेन आदि देशों में चिकित्सा शिक्षा के लिए जाने का उद्देश्य अपेक्षाकृत सस्ती पढ़ाई है। देश में एमबीबीएस सीटों को वर्ष 2014 के 54 हजार के मुकाबले वर्ष 2020 में 80 हजार किया जा चुका है। इसी अवधि के दौरान पीजी के लिए सीटों की संख्या 24 हजार से बढ़कर 54 हजार हो गई है। वर्ष 2021 में इन सीटों के लिए 16 लाख उम्मीदवारों ने नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट दिया था।
बीते नौ सालों में भारत में करीब 200 नए मेडिकल कालेज खुले हैं। सीटें भी बढ़ी हैं। फिर भी अभी विस्तार की जरूरत है। ताकि योग्य छात्रों को भारत में ही आसानी से प्रवेश मिल सके। साथ यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि निजी मेडिकल कालेजों में फीस इतनी भी न हो कि कोई सामान्य परिवार से जुड़ा छात्र पढ़ाई ही न कर सके।