तखतपुर. प्रतिवर्ष नवरात्रि में चंडी मंदिर में जलने वाली ज्योति कलश की यात्रा नवमी तिथि में निकलती है. इस वर्ष भी शारदीय नवरात्रि में जलाए गए ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा चंडी मंदिर से निकलकर देवांगन पारा और सदर बाजार होते हुए निकली और काली बाड़ी के बम बम घाट में जाकर विसर्जित हुई. इस वर्ष चंडी मंदिर में कुल 385 ज्योति कलश जलाए गए थे, जिनमें से 25 घृत ज्योति कलश थे.
तखतपुर के देवांगन मोहल्ले में स्थित माँ चंडी मंदिर में वर्ष के दोनो नवरात्रियों में श्रद्धालुओं द्वारा बड़ी संख्या में ज्योति कलश जलाए जाते हैं. नवरात्रि में निकलने वाली इस कलश यात्रा में वास्तव में शक्ति और भक्ति का संगम देखने को मिलता है. नगरवासी जगह-जगह पूजा करते हैं, जिससे जैसी व्यवस्था बन पड़ती है वैसी सेवा करते हैं.
राजा तखत की कुल देवी है चंडी माँ
तखतपुर में शक्ति के दो केंद्र है, जिनमे एक तखतपुर की माँ महामाया और दूसरी चंडी मंदिर में विराजित माँ चंडी है. कहा जाता है कि चंडी देवी तखतपुर के पूर्व नरेश तखत के 8 कुल देवी हैं. माँ चंडी से जुड़ी कहानी के अनुसार एक बार तखतपुर में भयंकर बीमारी फैल गयी. बीमारी के कारण लोग मरने लगे तो माँ चंडी ने सपना देकर बताया कि जंगल मे इमली पेड़ के नीचे बैठी हूँ. मेरी सेवा करो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. लोगों ने जाकर देखा तो माँ चंडी इमली पेड़ के नीचे थी. लोगों ने उनका मंदिर बनाकर सेवा करना शुरू किया तो बीमारी अपने आप दूर हो गयी. तब से चंडी माता को सिद्ध शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाने लगा.
ज्योति कलश की परम्परा 45 से 50 वर्ष पूर्व शुरू हुई, जो एक ज्योति कलश से आज के वर्ष तक 385 तक पहुंच गया है. ज्योति कलश की यात्रा की दूरी वैसे तो कुल दो से ढाई किलोमीटर का ही पड़ता है, लेकिन इन दो -ढाई किलोमीटर की दूरी को तय कर विसर्जित करने में 6 से 8 घंटे लग जाते हैं.
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