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दशहरे पर अनोखी परंपरा: पन्ना में धर्म की रक्षा के लिए महाराज छत्रसाल के वंशजों को सौंपी गई तलवार, बालाघाट में 40 किलो वजनी मुकुट पहनकर निकले ‘महाराज’

नीलम राज शर्मा, पन्ना/नीरज काकोटिया, बालाघाट। पन्ना जिले के प्राचीन खेजड़ा मंदिर में महाराज छत्रसाल के वंशजों को मंदिर के पुजारी ने तलवार और वीरा भेंटकर परंपरा निभाई। मान्यता है कि महामति श्री प्राणनाथ जी ने बुंदेलखंड की रक्षा के लिए महराजा छत्रसाल को वरदानी तलवार सौंपी थी और वीरा उठाकर संकल्प करवाया था जिससे महाराजा छत्रसाल पूरे बुंदेलखंड को जीत सके थे और अपना साम्राज्य स्थापित कर पन्ना को राजधानी बनाया था।

पन्ना में सैकड़ों वर्षों से लगातार यह परंपरा चली आ रही है। विजयादशमी के दिन आयोजित इस गरिमामयी कार्यक्रम में श्री प्राणनाथ जी मंदिर के पुजारी महाराज छत्रसाल के वंशजों का तिलक कर वीरा एवं तलवार देकर उस रस्म को निभाते हैं, जो कभी महामति ने महाराजा छत्रसाल को देश और धर्म की रक्षा के लिए प्रदान की थी।

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बालाघाट में 40 किलो वजनी मुकुट पहनकर चल समारोह में निकले ‘हनुमान

बालाघाट में भी जगत जननी मां दुर्गा की 9 दिनों तक उपासना करने के बाद आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व मनाया गया। जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचल में भी हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाया गया। वहीं भरवेली में प्रति वर्ष के अनुसार इस वर्ष भी चल समारोह का भव्य रूप से आयोजन किया गया, जिसमें 40 किलो वजनी मुकुट पहनकर निकले हनुमान आकर्षण का केंद्र रहे।

भरवेली ग्राम में पिछले 11 वर्षों से यह आयोजन आयोजित किया जाता है जो कि पानीपत हरियाणा के दशहरा उत्सव की तर्ज पर मनाया जाता है, इसमें खास बात यह है कि जो हनुमान जी का चोला धारण करता है वह अपने घर से दूर रहकर 40 दिन पहले से ही तप व जाप करते हुए मंदिर में रहता है। दशहरा पर्व के दिन 40 किलो वजनी मुकुट पहनाकर उसे शोभा यात्रा में शामिल होना पड़ता है जो शहर के विभिन्न चौक चौराहों और मार्गो का भ्रमण करते हुए दशहरा स्थल पर पहुंचती है, जहां अहंकारी रूपी रावण के पुतले का दहन किया जाता है।

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