रायपुर. यह सच है कि मनुष्य को एक दूसरे के सहयोग की अपेक्षा होती है, लेकिन मनुष्य का सबसे बड़ा संबल उसका आत्मविश्वास ही होता है. बच्चे को माता-पिता गुरू का संरक्षण और सहयोग प्राप्त होता है. चलना और गिरना तो बच्चे के विकास का अभिन्न अंग है, और गिरकर वापस उठकर फिर चलना आत्मविश्वास की पहली कड़ी मानी जा सकती है. माता-पिता, गुरू के सहयोग से आत्मविश्वास जागृत की जा सकती है, लेकिन स्वयं अपना कार्य पूर्ण आत्मविश्वास से करना, अपनों और समाज के हित में कार्य करना इसके लिए आत्मविश्वास का गुण होना चाहिए.
किसी जातक में इसकी क्षमता है अथवा कम क्षमता को विकसित कैसें करें कि आत्मविश्वास और आत्मनिर्णय का विस्तार हो सके इसके लिए किसी भी जातक की कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे और एकादश स्थान के ग्रहों तथा इन स्थानों पर मौजूद ग्रहों का आकलन करने से ज्ञात होता है. अगर किसी जातक की कुंडली में लग्न या तीसरा स्थान स्वयं विपरीत हो जाए अथवा इस स्थान पर क्रूर ग्रह हो तो ऐसे जातक के जीवन में आत्मविश्वास और आत्मसंयम की कमी के कारण जीवन में सफलता दूर रहती है.
इसी प्रकार एकादश स्थान का स्वामी क्रूर ग्रहों से पापक्रांत हो अथवा छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए, तो ऐसे लोग अनियमित दिनचर्या के कारण अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते अर्थात् स्वयं अपने जीवन में प्रकाश का समय और आवष्यकतानुसार उपयोग नहीं कर पाते, जिसके कारण परेशान रहते हैं.
इन सभी स्थितियों से बचने के लिए जीवन में आत्मसंयम और अनुशासन के साथ ग्रह शांति करनी चाहिए. बाल्य अवस्था में मंगल के मंत्र जाप और बड़ों का आदर और युवा अवस्था में शनि के मंत्रों का जाप, दान और अनुशासन रखना चाहिए. इसके साथ ही मंत्र जाप करना, बड़ों का आशीर्वाद लेना और जीव सेवा करना चाहिए.
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