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सेन जयंती के अवसर पर विशेष

राजनांदगांव. प्रत्येक समाज में कोई न कोई महापुरूष हुए है जो मानव समाज को दिशा दी है। उन्हीं में से एक संतशिरामणी श्री सेन जी महाराज है। जिनका जन्म मध्यप्रदेश के रीवा जिले के बांधवगढ़ के नाई कुल में जन्म लिया था इनके बचपन का नाम नंदा जी थे तथा इनके पिता का नाम मुकुन्दराम तथा माता का नाम जीवण देवी एवं पत्नी का नाम गजरा देवी था।
श्री नंदा जी महाराज वीर सिंह के यहां सौरकर्म का कार्य करते थे। उस समय राजा के कार्य में बाधा उत्पन्न होने पर मृत्युदंड कोड़ों से मारने जैसे कठोर सजा दी जाती थी। बांधवगढ़ के महाराज वीर सिंह कुष्ठ पीडि़त थे और नंदा जी श्री हरि विष्णु जी के परम भक्त थे। एक बार श्री नंदा जी महाराज वीर सिंह के सौरकर्म करने के लिए राजमहल जाने के लिए निकल ही रहे थे। उसी समय सतसंग मंडली श्री नंदा जी के घर पहुंच गय। सतरंग मंडली को देखते ही नंदा जी अपने घर से सतसंग मंडली के हरिभजन में लीन हो गये इधर नंदा जी हरिभजन में लीन हो गये उधर श्री हरिविष्णु जी नाई का रूप धारण किये हुए महाराज वीर सिंह का सौरकर्म तेल मालिस करके चले गये। श्री नंदा जी को हरिभजन करते हुए याद ही नहीं रहा कि मुझे महाराज वीर सिंह की सेवा करने जाना है। तभी अचानक उसे याद आया कि मैं यहां सतसंग में लीन हूँ। और महाराज वीर सिंह के यहां जाना है। हाफते हुए दौड़ते हुए नंदा जी महल की ओर गये जैसे ही महल में प्रवेश करने लगे तो दरबारियों ने कल नंदा जी कुछ भुल तो नहीं गये है। अभी-अभी तो आप आकर गये हो नंदा जी ने कहा कि मुझे आने में बड़ी देर हो गया है। मुझे महाराज के पास जाना है जैसे ही नंदा जी महाराज वीर सिंह के पास गया क्षमा मांगने लगा और दृष्टांत सुनाने लगा महाराज वीर सिंह नक हा कि आप तो अभी-अभी सौरकर्म करके गये हो फिर क्षमा किस चीज का तब महाराज वीर सिंह को एहसास हुआ कि आप हरिभजन लिप्त थे और भगवान श्री हरि विष्णु आपके हरि भजन से प्रसन्न होकर आपके (नाई) के रूप में आकर मेरी सेवा की इसलिए मेरा असाध्य रोग भी दूर हो गया आप सच्चे हरिभक्त है। और आज से आपका नाम नंदा जी नहीं संत शिरोमणी सेन जी महाराज कहलायेंगे। बोलो भक्त शिरोमणी सेन जी महाराज की जय।
भक्त की भीर देखकर अब राज की कोड़ हरता है।
सेन नाई का रूप बनाकर, भगवान हजामत करता है।।

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