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रिजर्व बैंक नीतिगत दर में देस सकता है रहत…

अप्रैल माह में खुदरा और थोक महंगाई (Inflation) में आई बड़ी गिरावट ने कई मोर्चों पर राहत दी है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 18 माह के निचले स्तर 4.7 फीसद पर है। वहीं, थोक महंगाई 34 माह बाद शून्य से नीचे फिसलकर -0.92 फीसद पर रही। खुदरा महंगाई लगातार दूसरे महीने रिजर्व बैंक के छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से नीचे रही है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक नीतिगत दर (Repo Rtae) में राहत दे सकता है। इससे कर्ज की मासिक किस्त (EMI) में कमी आ सकती है।

खुदरा मुद्रास्फीति दर बीते 13 माह से आरबीआई के तय दायरे से ऊपर बनी हुई थी। इस साल जनवरी और फरवरी में यह छह फीसद के ऊपर थी। मार्च में इसमें कुछ गिरावट आई थी, लेकिन फिर भी यह 5.66 फीसद पर थी। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति पर विचार करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है। केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। महंगाई को काबू में लाने के लिए आरबीआई को फरवरी में मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपो दर में 0.25 फीसद का इजाफा करना पड़ा था।

रेपो रेट में 2.50 फीसद की वृद्धि

आरबीआई ने महंगाई में तेज उछाल को काबू में लाने के लिए रेपो रेट में बढ़ोतरी का सिलसिला मई 2022 महीने से शुरू किया था। मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच कुल छह बार रेपो रेट में 2.50 का इजाफा किया जा चुका है। अभी रेपो दर 6.50 फीसद पर बनी हुई है। इसके बाद बैंकों ने भी अपने कर्ज की ब्याज दरों में वृद्धि की जिससे आवास और वाहन समेत सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए। इससे लोगों की ईएमआई में भी लगातार वृद्धि होती रही। हालांकि अप्रैल में हुई मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपो दर में वृद्धि नहीं की गई थी।

रेपो दर बढ़ने का इस तरह असर

रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाकर बाजार से पूंजी की तरलता यानी नकदी के प्रवाह को कम करता है ताकि महंगाई दर को काबू किया जा सके। आरबीआई के रेपो रेट बढ़ाने से सभी बैंकों पर कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव बढ़ जाता है और उन्हें आवास ऋण समेत अन्य तरह के कर्ज पर ब्याज दरों को महंगा करना पड़ता है, जिसका असर कर्ज लेनेवालों को बढ़ी हुई मासिक किस्त के रूप में झेलना पड़ता है।

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