ओडिशा के बालासोर में जो रेल दुर्घटना हुई वह पिछली और वर्तमान सदी की शायद सबसे बड़ी व भयानक दुर्घटना है। जिसमें मृतकों की संख्या 500 के आसपास पहुंच चुकी है और अभी भी कितने ही यात्रियों की लाशों का कोई अता-पता नहीं है। जैसाकि आमतौर पर होता है कि, हर दुर्घटना के बाद दुर्घटना के कारणों व अतीत की घटनाओं का लेखा-जोखा मीडिया लेता है। कुछ दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में घटना जिंदा रहती है और फिर सब शांत हो जाता है। ऐसा इस घटना के बाद भी संभव हैं और एक प्रकार से इस प्रकार का ऐसा वातावरण धीरे-धीरे देश व समाज में बनता जा रहा है।
यह आश्चर्य की बात है कि देश के प्रतिपक्ष की बड़ी पार्टी कांग्रेस जो आमतौर पर आये दिन भारत सरकार से इस्तीफा मांगती है। इस बड़ी घटना पर उसने आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साधी हुई है। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी रेल मंत्री को ही जिम्मेवार माना और प्रधानमंत्री को अघोषित रूप से बरी कर दिया। यह भी खड़गे जी की सद्भावना की नीयत कहें या किसी राजनैतिक समझ का हिस्सा, यह कहना कठिन है। हो सकता है कि वह इस मानवीय त्रासदी से पीडित हज़ारों परिवारों के दुखों का राजनीतिकरण के आरोप से बचना चाहते हों।
इस दुर्घटना के बाद फिर एक बार समाज और खासकर भारतीय समाज ने अपनी मानवता का प्रदर्शन किया। सबसे पहले आसपास के सैंकड़ों हज़ारों ग्रामीण जन वहां पहुंचे और उन्होंने मृतकों के शवों व घायलों को निकालने में अस्मरणीय सहयोग किया। साधन विहीन होने के बावजूद भी ग्रामीण जन उस अंधेरी रात में मानवता की सेवा करते रहे और भारत की संस्कृति के सही रूप को प्रदर्शित किया। इन मददगारों ने न नाम छपवाया न फोटो छपवाई बल्कि बगैर किसी के आदेश या निर्देश वे अपनी सेवा में लग गये। सरकार वहां बाद में पहुंची समाज पहले पहुंचा। यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि आम घटनाओं के विपरीत इस घटना के पीड़ित यात्रियों के सामान आदि की कोई चोरी से संबंधित शिकायत नहीं हुई, वर्ना पहले की दुर्घटनाओं के समय ऐसा होता रहा है कि जन समुदाय दुर्घटनाग्रस्त लोगो का सामान आदि ले गये। उड़ीसा, बालासोर के घटना स्थल के आस-पास के निवासियों की ईमानदारी और चरित्र का अनुभव इस घटना से होता है।
दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री जी स्वतः घटना स्थल पर पहुंचे और मीडिया में यह खबर प्रमुखता से आई है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी नरेन्द्र मोदी है जो रेल दुर्घटना के बाद वहां पहुंचे।तथ्यात्मक रूप से यह सही भी है परन्तु इसके दो पक्ष और भी विचारणीय है पहला तो यह है कि, जितनी भयावह दुर्घटना हुई है और इससे जितनी अधिक संख्या में लोग मरे या घायल हुए है शायद यह देश की पहली घटना है। दूसरा – यह भी पहली ही घटना मानी जाना चाहिये कि देश का प्रधानमंत्री वंदे भारत जैसी गाड़ी को झंडी दिखाने के लिये प्रत्येक जगह पहुंच रहे है। वंदे भारत के समान स्व. माधवराव सिंधिया के जमाने में शताब्दी एक्सप्रेस चली थी जो क्रमशः देश के अनेक इलाकों को कवर करती थी। कम से कम मेरी जानकारी में नही है कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने शताब्दी एक्सप्रेस को झंडी दिखाने के लिए एक दिन का दौरा किया हो। एक अन्य पहलू कि प्रधानमंत्री जी की वस्त्र नीति यहां भी जारी रही। यह उनका अभ्यास है कि वे समयानुसार अपने वस्त्र की डिजाईन तय करते हैं। जब वह दुर्घटना स्थल पर पहुंचे तो वह काली जैकिट पहने हुये थे जो शोक का प्रतीक है। इसके बाद के कार्यक्रम में वह नीली जैकिट में थे। प्रधानमंत्री कि यह क्षमता अद्भुत है कि इतने बड़े राष्ट्रीय शोक के समय भी जैकिट के रंग का चयन करना नहीं भूलते।
उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने भी अपने स्वभाव व तरीके के अनुकूल बगैर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किये, अपने सरकारी संसाधनों को बचाव कार्य में लगा दिया। यह श्री नवीन पटनायक की विशेषता है कि वे मदद करते पर न तो फोटो खिंचवाते और न ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते बल्कि मूक ढंग से कार्य करते है। वर्ना हमने तो देश के ऐसे मुख्यमंत्री देखे हैं जो तूफान में गिरे पेड़ की डोरी बांधकर फोटो खिंचवाते हुए छपवाते हैं। भीगे हुए लोगों को केटली लेकर चाय पिलाते फोटो निकलवाते एवं प्रचार व प्रदर्शन करते हैं। इस दुर्घटना को लेकर अनेक प्रकार के और प्रश्न सामने आये हैं। यद्यपि सरकार की ओर से अभी तक कोई निश्चित सूचना जारी नहीं की गई सिवाय इसके की प्रधानमंत्री जी ने वहां पहुचकर यह कहा कि दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा। उनके इस कथन के अनेक अर्थ हो सकते हैं। हालांकि रेलवे के नियमों के अनुसार किसी भी दुर्घटना के बाद रेल सुरक्षा आयुक्त जांच करते व अपनी रपट देते हैं। रेल सुरक्षा आयुक्त ने इस बारे में क्या रपट दी है इसका भी कोई निश्चित विवरण या जानकारी अधिकृत तौर पर नहीं दी गई। परन्तु छुटपुट मीडिया में आये हुये समाचारों से यह जानकारी मिली कि कोरामंडल एक्सप्रेस जिसे लूपलाईन से निकाला गया था और उसी पटरी पर मालगाड़ी भी आ रही थी इस कारण से भयावह टक्कर हुई और दो डिब्बे टूटकर बाजू की पटरी पर गिरे, जिससे उस पटरी पर आ रही यशंबतपुर दोरंतो एक्सप्रेस क्षतिग्रस्त हुई। प्रश्न यह उठता है कि, कोरामंडल एक्सप्रेस को लूप लाइन पर क्यों भेजा गया और विशेषतः तब जब उसी पर मालगाड़ी आ रही थी। निसंदेह यह मानवीय चूंक तो है ही, इसके साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि अगर कोरामंडल व मालगाड़ी के इंजन में कवच सिस्टम होता तो दुर्घटना बच सकती थी।
सरकार ने विगत् दिनों यह प्रचारित किया था कि उसने कवच योजना शुरू की है और इस कवच सिस्टम से भविष्य में कोई दुर्घटना नहीं हो सकती। याने आमने सामने से आने वाली या दुर्घटना की संभावित होने वाली गाड़ियों के कवच सिस्टम होने से दुर्घटना को रोक देंगे। कवच नाम भी सरकार का जुमला है। वैसे इसका पूरा नाम तो आटोमैटिक ब्रेकिंग सिस्टम है। यह कटू सत्य है कि देश के 19 रेलवे जोनों में से 18 जोनों में एक भी गाड़ी में कवच सिस्टम नहीं है। जबकि देश में कुल 13215 रेल के इंजन है जिनमें से मात्र 65 में अभी तक यह सिस्टम लग पाया है। अब प्रधानमंत्री जी से यह पूछा जाए कि रेलवे स्टेशनों के विश्वस्तरीय बनाने के नाम पर, सुंदरीकरण के नाम पर अरबों-खरबों रूपया बर्बाद करना प्राथमिकता है या दुर्घटनाओं को रेाकने के लिये कवच सिस्टम। इतने वर्षों में मात्र 65 इंजनों में कवच सिस्टम लगाना क्या सरकारी असफलता नहीं है ? और फिर 65 इंजन भी किन गाड़ियों के हैं इसकी खोज आवश्यक है।
अपने अनुभव के आधार पर मेरी यह समझ है कि सरकार रेल गाड़ियों कि गति बढ़ा रही है जो कि बढ़ना भी चाहिए उसके लिये नये-नये बड़ी गति वाले ताकतवर इंजन दुनिया से खरीदे जा रहे हैं। परन्तु इतनी तेज गति के झटके को झेलने की ताकत वाले कपलिंग या स्प्रिंग गाड़ियों में नहीं है। पुराने स्प्रिंग इन तेज गति की गाड़ियों को झेल नहीं पाते और अक्सर डिब्बे पटरियों पर उछलने लगते हैं मगर भारत सरकार ने तीव्र गति की गाड़ियों और गति बढ़ाने वाले इंजन लगाने के साथ-साथ उसमें लगने वाले डिब्बों की स्प्रिंग आदि गति के अनुकूल क्षमता वाले लगाये होते तो डिब्बे पलट कर बाजू की पटरी पर नहीं गिरते तथा शायद दुर्घटना बच जाती।
परन्तु अपनी परंपरा के अनुसार सरकार ने दुर्घटना के लिये आतंकवाद व सांप्रदायिक रंग देने का अस्त्र अपनाना शुरू किया है। प्रधानमंत्री जी का यह कहना कि किसी दोषी को बक्सूँगा नहीं। देश के इतिहास में पहली बार रेल दुर्घटना की जांच सी.बी.आई. को सौंपना कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है। वरना सी.बी.आई. जांच का अर्थ क्या है? अगर रेलवे के सिंग्नल क्लीयरेंस देने वाले कर्मचारियों, अधिकारियों, की त्रुटि होती तो वह तत्काल ही सिद्ध हो जाती? क्योंकि गाड़ी को किस लाईन पर भेजा गया इसका डिजिटिलाईज़ रिकार्ड होता है। जबकि अभी तक ऐसे कोई प्रमाण या चर्चा सामने नहीं आई।
सी.बी.आई. जांच आदि आवश्यक है, और संस्थागत विषय है। परन्तु इन सबके ऊपर एक नैतिक दायित्व भी होता है। पूर्व प्रधानमंत्री और रेल मंत्री रहे स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना होने पर अपना नैतिक दायित्व स्वीकार किया और इस्तीफा दे दिया था। परन्तु इस नैतिक दायित्व के प्रश्न पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव चुप है और प्रधानमंत्री मौन है। लगभग तीन सप्ताह बीत चुका है और अब तो रेल मंत्री की नैतिक आत्मा वैसे भी सो चुक होगी क्रमशः विषय भी द्रष्टि ओझल हो रहा है और सी.बी.आई. जाँच के बाद तो कुछ नये रहस्य सामने आ जायेंगे। कौन नहीं जानता कि सी.बी.आई. जांच के निष्कर्ष पहले तय हो जाते और जांच बाद में। हम कैसे भूल सकते हैं कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सी.बी.आई. को तोता कहा था जो सरकार के पाठ को दोहराता है।
मुझे सरकार से ज्यादा कुछ नहीं कहना। क्योंकि सरकार से मुझे कोई उम्मीद भी नहीं है। परन्तु देश के राजनैतिक दलों और समाज से जरूर कहूंगा कि इस प्रकार कि दुर्घटनायें, दुर्घटनायें नहीं है। बल्कि व्यवस्था की असफलता और उसके परिणामस्वरूप हुई हत्यायें क्या आप इन्हें भूल जाओगे।
भारत सरकार से मैं अपेक्षा करूंगा कि:-
1. यह निर्णय करें कि इस वर्ष में कम से कम 50 प्रतिशत रेल के इंजनों में कवच सिस्टम लग जाये।
2. जितनी भी गाड़ियों की गति बढ़ाने के लिये हाल के वर्षों में शक्तिशाली इंजन लगाये गये हैं। उनके स्प्रिंग सिस्टम को गति की जरूरत के अनुसार मजबूत बनाया जाये।
3. रेलवे स्टेशनों के सौन्दरीकरण और निजीकरण के बजाय इस पैसे को रेल के बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाये ताकि वह मजबूत बन सके।
4. रेल कर्मचारियों के रिक्त पदों को विशेष अभियान चलाकर विकेन्द्रीकृत ढंग से डिविजन वाइज चयन कर पदों को भरा जाये ताकि कर्मचारियों के ऊपर विशेषतः परिचालन वाले कर्मचारियों के ऊपर बढ़ रहे काम के बोझ और मानसिक संताप को कम किया जा सके।
5. रेल के अन्य अधिकारियों, मंत्री आदि के लिये चलाई जाने वाली राजतंत्री सैलून वाहनों को तत्काल बंद किया जाये। ताकि वे आम यात्रियों के साथ यात्रा करें व वस्तु स्थिति से अवगत हो सकें।
6. मृतकों और गंभीर घायलों के परिजनों में से एक को उनकी योग्यता व आवश्यकतानुसार रेलवे में स्थाई रोजगार दिया जाये।
7. आऊट सोर्सिंग को बंद कर, आऊट सोसर्सिंग वाले कर्मचारियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू की जाए।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।
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